देखते हुए भी हम हो गए अंधे,
सुनते हुए भी है बहरे!
जिव्हा रहके भी हम गूंगे,
हम सब बन गए है बस रबर की मुहरें!!
यह हाल है हम भारत वासियों का,
जहा अपराधियों को ताज पहनाया जाता!
फ़ूलो का हार पहना के उन्हे,
उनका जय-जय कार बुलाया जाता!!
दिन -दहाड़े लूट -हत्याएं करके,
वे घोटाले पे घोटाले करते हैं!
अबलावों की ईज़्ज़त लूट के वे,
मस्ती के साथ झुमते हैं!!
गरीबों का खून चूसके वे,
माला-माल बन रहे है!
बस वोटों के लिए लुभावने वादे,
वे जी भर के मुख से कर रहे हैं!!
हम जान के भी अंजान से बन,
हम उनकी ताज-पोशी करते है!
वे खून हमारा जी भर के पीते
और हम डर-डर के मरते हैं!!
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-१९/०५/२००१,शनिवार,सुबह-११ बजे,
थोप्पुर घाट(तमिलनाडु)