(शार्दूल विक्रीडित छंद)
जय दुर्गे मां
"देवी स्तुति"
धारे हाथ दसो गदा धनु अनी, खड्गादि को धार के।
शूली चक्र भूषुण्डि शंख परिघा, माला गले मुंड के।।
सोए माधव क्षीर सागरमहा,ब्रह्मा थके सोच के।
दैत्यों में मधु कैटभादि अति बली,को कोई कैसे हने।।१।।
ध्यायें ब्रह्म प्रार्थना करत हैं,देवी महाकालिका।
मारे जो उस दैत्य को सरल से, देवी महा चंडिका।।
ध्याऊं मैं कमलासनी पर स्थिरा, साक्षात लक्ष्मी महा।
हाथों में जिनके गदा धनुष है,रुद्राक्ष माला तहां।।२।।
घंटा पद्म सुहाय बाण फरसा, देवी धरी शूल है।
धारी है कर कुंडिका कुलिस है,अंभोज आवर्त है।।
गौरी मातु शरीर से प्रकट है,मां शारदा मातु है।
ध्याऊं मैं तुम को प्रणाम करके, नाऊं सदा माथ है।।३।।