बारूद के ढेर पे बैठ के हम,
फ़िर शांति की बातें करते हैं !
अपने ही घरों मे आग लगा,
फ़िर हम पानी के लिए दौड़ते हैं !!
हथियारों की होड़ मे समस्त विश्व,
जो एक-दूजे का लहू बहाने को आतुर है !
ग्यान-बुद्धि को पाकर के,
जो आज बने भष्मासुर हैं !!
नित नए खोज करते-करते,
हम चांद-सितारों पे पहुंच रहे !
प्राकृतिक वस्तुओं का दोहन कर,
हम खुशियों मे आज हैं झूम रहे !!
खोज करो तो ऐसे जग मे,
जिसमे मानव कल्याण झलकता हो !
ऐसे खोजों का करना ठीक नही,
जिनसे मानव विनाष का खतरा हो !!
सोच समझ के हम नही चले,
तो हम स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे !
विनास कारी आणविक युद्धों से,
हम किसी भी तरह से नही बच पाएंगे !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक-१६/१०/२०००, सोमवार ,दोपहर-१२.५५ बजे
चंद्रपुर,( महाराष्ट्र)