यह मुस्काता हुआ अपना भारत ,
जो कि सारे जहां मे न्यारा है !
विभिन्नता मे बसी एकता ,
यह हम सब का बहुत दुलारा है !!
प्यार भरे इसके आंगन मे ,
कई तरह के संगीत बजते रहते !
सब अलग- अलग अपनी पसंद के ,
मधुर गीत सुनते रहते !!
सभी धर्मों का संगम है यहां ,
जिसमे सब नहा के पवित्र हो जाते है !
प्यार से जो कोई देखे हमे ,
हम उनके मित्र बन जाते हैं !!
कई जातियां रहती है जहां,
जिनके रश्मों - रिवाज अनोखे हैं !
प्रेम भरा है यहा के कण -कण मे,
जहां प्यार के कई झरोखे हैं !!
मेहमानों को भगवान सा आदर कर ,
उन्हे हम दिल से सम्मानित करते है !
पर कोई बुरी नज़र डाले हम पर ,
उन्हे हम दिल से अपमानित करते हैं !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -२७/०३/२००० , सोमवार ,सुबह १०.१० बजे,
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)