दुनिया मे नदी अनेको हैं,
पर गंगा नदी महान है ।
ये पतित -पावनी है देवी,
जो हम सब की जीवन दान है ॥
शिव जी की ये जटा से निकली,
इसकी हर-हर ध्वनि करती लहरें ।
अमृत जैसा है इसका जल,
जो प्राणियों के सभी पापों को हरे ॥
धन्य है हमारी भारत भुमि,
जहां गंगा माँ प्रगट हुई ।
हम सब भी तो धन्य-धन्य हैं,
जो ये यहां पे तटस्थ हुई ॥
गंगा जल की महिमा का,
हम कर सकते हैं बखान नही ।
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
इसका करते हैं रस-पान सभी ॥
आज हो रहे इस पर अत्याचारों से,
ये मन मे बहुत रो रही है ।
अपने बहते आसुवों से,
हमारे पापों को धो रही है ॥.....२..
मोहन श्रीवास्तव (कवि )
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06-07-2013,saturday,7.45
pm,
pune,maharashtra.