Monday 10 June 2024

श्री भगवन्निंबार्क महामुनिंद्र द्वारा रचित श्री राधा अष्टकम का हिन्दी भावानुवाद”

श्री भगवन्निंबार्क महामुनिंद्र द्वारा रचित श्री राधा अष्टकम का हिन्दी भावानुवाद”


श्री राधा अष्टमी पर पढ़ें राधा अष्टकम हिन्दी अर्थ सहित 

राधा अष्टमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। राधा अष्टमी को बृषभानु दुलारी राधा रानी के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया है। 

2023 में राधा अष्टमी 23 सितम्बर दिन शनिवार को मनाई जाएगी। राधा अष्टमी कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद आती है। ऐसा माना जाता है कि अगर श्री कृष्ण की कृपा शीध्र प्राप्त करनी है तो श्री राधा रानी के नाम का जाप करना चाहिए। राधा अष्टमी पर पढ़ें श्री राधा अष्टकम जिसमें श्री राधा रानी की सुन्दर स्तुति की गई है।‌




पराशक्ति हे माधवी देवि लक्ष्मी,

नमस्कार राधा नमस्कार राधा।

सदा कृष्ण की आप प्यारी प्रिया हो,

नमस्कार राधा नमस्कार राधा।।

सदानंद रूपा सदानंदकारी,

हिया में बसो कृष्ण के संग प्यारी। 

तुम्हे सिद्ध संतों सुजानों ने साधा, 

हरो लोक बाधा नमस्कार राधा।।१।।


सदा लीन पूजा यशोदा लला के,

दही दूध नैनू़ं कभी थे चुराये।

कभी आपके वस्त्र को डालियों में,

कन्हैया सही सीख देने छिपाए।।

बंधे प्रेम की डोर से माँ यशोदा,

तभी श्याम दामोदरा थे कहाए।

सदा श्याम की प्रेयसी को भजूंँ मैं,

हरो लोक बाधा, नमस्कार राधा।।२।।



दुराराध्य है कृष्ण की भक्ति राधे,

उन्हें पूज के वश्य में जो किया है।

तुम्हे विश्व में कृष्ण आराधना से,

मिली ख्याति होके प्रभू की प्रिया है।।

दिया नाम राधा स्वयं आपने है,

मुरारी पिया कृष्ण छाये हिया हैं।

मुझे दो सहारा तथा कृष्ण भक्ति,

हरो लोक बाधा, नमस्कार राधा।।३।।


सदा आपसे वो बंधे प्रेम डोरी,

फिरें आपके पास बाँके कन्हैया।

पतंगा बने घूमते झूमते हैं,

तथा खेलते संग ग्वाले व गैया।।

करूंँ कृष्ण पूजा यही मांँगता हूंँ,

कृपा तो करो आप होके सहैया।।

रटूंँ नित्य गोपाल के नाम को मैं,

हरो लोक बाधा, नमस्कार राधा।।४।।


बने नित्य ही कृष्ण की अंक माला,

भरे भाव से स्नेह में नैन गीला ।

फिरे संग गोविन्द के कुंज राधा,

किये थे जहांँ साँवरे बाल लीला।।

उन्ही राधिका की करूँ नित्य पूजा,

सदा सच्चिदानंद रूपा सुशीला।

कृपादृष्टि देवी सदा भक्त पे हो,

हरो लोक बाधा, नमस्कार राधा।।५।।


सदा व्याप्त हैं आपमें कृष्ण प्यारे,

वही चित्त में प्राण में हैं समाये।

इसी हेतु श्री अंग रोमांचकारी,

सभी अंग में स्वेद बिंदु है आये।।

सदा देख के देवि दाती दयालू,

कृपादृष्टि वृष्टि कृपालू कराए।

मिलेगा कभी देखने क्या बताओ,

हरो लोक बाधा, नमस्कार राधा।।६।।


सदा सर्वदा हैं स्वयं श्याम चारू,

उन्हीं पाद राजीव को भक्त ध्याते।

भले आपके पांँव की दर्श आशा,

रखें चित्त में श्याम को हैं बुलाते।।

बिखेरो कृपा चित्त में देवि मेरे,

खिले ज्योति का पुंज भक्ति समाए।

मुझे हे प्रिया पांँव का दर्श दे के,

हरो लोक बाधा, नमस्कार राधा।।७।।


प्रभा आपके रूप का दिव्य फैले ,

सदा नैन के सामने देवि मेरे।

सदा राधिका नाम हो अग्र जिह्वा,

रटूँ नाम तो मोह माया न घेरे।।

गुणों को प्रिया चित्त में नित्य धारूंँ,

सुनाई पड़े कान कीर्ति घनेरे।

रमा रम्य राधा यही कामना है ,

हरो लोक बाधा नमस्कार राधा।।८।।


सभी श्लोक आठों जुड़े राधिका से,

प्रिया प्राण प्यारी प्रभो को रिझाये।

करें पाठ जो नित्य राधाष्टकम का,

सखी रूप में कुंज में वास पाये।।

मिले सौख्य सौभाग्य आरोग्य सारे,

अहोरात्र जो राधिका कृष्ण गाये।।

करूँ युग्म सेवा कन्हैया-प्रिया जू, 

हरो लोक बाधा नमस्कार राधा।।९।।


कवि मोहन श्रीवास्तव

महुदा झीट अम्लेश्वर दुर्ग

१०..६.२०२४



Monday 13 May 2024

भोजपुरी (मोर संवरिया मोर बतिया........)

सुनत नाही हो सुनत नाही
मोर संवरिया मोर बतिया सुनत नाही.......२
सुनत नाही हो............

दिल की जब बतिया उनसे करीला..२
हथवा के जोड़ दुनउ बिनती करीला........२
कवनउ जतनिया...२ चलत नाही
मोर सवरिया मोर..........

होत सबेरवां घरवा से जइतन..२
आधि-आधि रतियां....२, घर नही अउतन...२
मोरि कदरिया......२ करत नाही..........
मोर सवरिया मोर..........

अब त जनम भर उनही कर रहबइ..........२
दिल मे त पियवा क मूरत बसइबइ.........२
कवनउ गलनिया.....२, करब नाही......२ 

मोर संवरिया मोर बतिया सुनत नाही.......२
सुनत नाही हो............२

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
03-10-1999,sunday,1.30pm,
chandrapur,maharashtra.

Tuesday 2 April 2024

हाय रे घोटालेबाज

"हाय रे घोटालेबाज"
हाय रे घोटालेबाज, दारू वारू के दलाल,
आखिर में पहुंच गया तू तो तिहाड़ में।
बड़ी बड़ी कर बात, देश से तू किया घात ,
भ्रष्टाचारी देशद्रोही अब जा तू भाड़ में।
मिटायेंगे भ्रष्टाचार, बोल बोल के गद्दार,
पर तूं भी जाके मिला, चोरों की कबाड़ में।
गड़बड़ झालावाला वाला , बन गया दारू वाला,
देश द्रोह करता था, नेता गिरी आड़ में।।

फट गया तेरा ढोल, खुल गई सारी पोल,
बच्चा बच्चा जान गया तेरे इस खेल को।
तेरे साथ मिले और, कई बड़े बड़े चोर,
तेरे आगे पीछे सब जा रहे हैं जेल को।।
तूं तो ना किसी का सगा, सब को है तूने ठगा ,
मुफतखोरी की दौड़ा रहा था तू रेल को।
सब लोग जान गए, तुझे पहचान गए,
तिल तिल तरसेगा अब तू तो बेल को ।।
मोहन श्रीवास्तव
02.04.2024, मंगलवार
महुदा झीट पाटन दुर्ग



Monday 1 April 2024

काला बाल


बुड्ढा पन करो बाय, जब है हेयर डाई,
फटाफट बूढ़ों को जवान ये बनाता है।
सत्तर को साठ कर, साठ को पचास कर,
उम्र दस बीस साल सब का छिपाता है।।
बाल को काला करके , मारके बुढ़ापा गोली
आईने के सामने खड़े हो इतराता है।
होते जब काले बाल, दिल होता खुशहाल,
चेहरे का भाव व प्रभाव बढ़ जाता है।।

जब पके मेरे बाल, देवी जी का सूजा गाल,
बोली जाके आज बाल काले करवाइए।।
करूंगी न बात चीत , भूल जाना सब प्रीत,
और कोई काम धाम मुझे ना बताइए ।
मेरे साथ घूमने को जाना है जो आपको तो
जाइए जी जाइए बहाने न बनाइए।
बोली मैं तो जानती हूं आप की सच्चाई सब,
बूढ़े हो रहे हो ये न जग को जनाइए।।

देवी जी की बात मांन, गया नाई की दुकान,
बोला  मुझे कर दो जवान लीप पोत कर l।
मुस्काते हुए मुझे नाई बोला बैठ जाओ,
कुर्सी पे बैठा मैं भी दांत को निपोरकर।।
दांत जो निपोरा मैंने वो भी मेरा नकली था,
आ गया बाहर साला मुंह से निकलकर।
नाई हैरान हुआ मैं भी परेशान हुआ,
बात सुलटाया मैने कैसे भी संभलकर।।

कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा झीट पाटन
01.04.2024

Sunday 24 March 2024

होली खेलैं बनवारी बिरज में २

होली खेलैं बनवारी बिरज में २
उठि के बिहनियां धूम मचावें
पू पू करके पूप बजावें
लेके कनक पिचकारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।१।।

तन पीताम्बर कटि में करधन
पग में घुंघरू बजत छनन छन
नंद बबा के दुआरी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।२।।

भरि पिचकारी ग्वारन आए
कान्हा को सब रंग लगाए
करते हुड़दंग वो भारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।३।।

ढोलक झांझ मृदंगा बाजे
घूंघट ओढ़ि गुआरिन लाजे
देवत गीत में गारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।४।।

रंग गुलाल अबीर उड़ाएं
इक दूजे को रंग लगाएं
रंग गये आज मुरारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।५।।

होली खेलैं बनवारी बिरज में २

शुभ होली (कुंडलियां)

होली की शुभकामना, आप सभी को मीत।
वैर भाव सब दूर कर, गले लगो धर प्रीत।।
गले लगो धर प्रीत, अबीर गुलाल लगाओ।
हिंसा ईर्ष्या द्वेष, सभी मिल दूर भगाओ।।
खाओ गुझिया भांग, माथ पे चन्दन रोली।
मोहन कहता आज, आप सब को शुभ होली।।

Monday 18 March 2024

"राधा कृष्ण की होली" दोहे

"राधा कृष्ण की होली"


राधा जी मकरंद हैं, लूटें कृष्ण पराग।
लिपट लिपट कर खेलते, यमुना तीरे फाग।।


श्याम रंग में डूबते, राधा के सब अंग।
गोरी राधा से हुए, मोहन मस्त मलंग।।


बरसाने टोली चली, खेलन होली आज।
ग्वालबाल संग श्याम लखि, राधा आवे लाज।।


मोहन पिचकारी लिए, जाते राधा पास।
भागी जाएं राधिका, मन में है उल्लास।।


लिन्ह पकड़ हैं राधिका, श्याम कसे भुजबंध।
लट कपोल रगड़ें किसन, करें बहुत हुड़दंग।।


कटि बांधे पीताम्बरी, कसे वेणु निज श्याम।
मोर पंख है सीस पर , लगते सुख के धाम।।


श्याम प्रीत के रंग में, राधा जाए डूब।
इक दूजे पे रंग से, होली खेलें खूब।।


पिचकारी की मार से, राधा हुईं बेहाल।
पाकर मोहन प्रेम को, हो गइ मालामाल।।


भीगी चूनर राधिका, पीताम्बर घनश्याम।
रंगों की बौछार से, यमुना हुई ललाम।।


जमुना जल में धो रहे, दोनों अपना रंग।
मोहन राधा रंग से, जमुन हुई सतरंग।।


होली के सब रंग को , धोएं राधा श्याम।
मोद युक्त यमुना हुई, छवि निरखत अभिराम।।


होली की शुभकामना, आप सभी को मीत।
सतरंगी जीवन रहे, बढ़े सभी में प्रीत।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
12.03.2023
Mahuda,jheet,patan durg Chhattisgarh
1367

Wednesday 13 March 2024

वो जाके बसे परदेश

अपने जीवन कुछ शेष।

वो जाके बसे परदेश।।


जनमें बेटा-बेटी थे  जब,

हर्षित बापू माई।

चाचा चाची नाना नानी,

दादा दादी ताई।।

थी खुशियां बडी विशेष।

वो जाके बसे परदेश।।१।।

अपने जीवन कुछ शेष।


हमने जैसे तैसे जीकर,

उनको खूब पढ़ाया।

उनकी सुख सुविधा के खातिर,

अपना मान घटाया।।

उन्हें ना हो दुःख लव लेश।

वो जाके बसे परदेश।।२।।

अपने जीवन कुछ शेष।


पढ़ लिख कर जब योग्य हुए तो,

अपना व्याह रचाए।

दूर देश में जाकर के वे,

अपना गेह बसाए।।

लें मोबाइल सन्देश।

वो जाके बसे परदेश।।३।।

अपने जीवन कुछ शेष।


क्या क्या सोचे थे हम दोनों,

देखे थे सुख सपने।

अपना दुःख किसको बतलाएं,

छोड़ गए जब अपने।।

दिल में दिन रात कलेश।

वो जाके बसे परदेश।।४।।

अपने जीवन कुछ शेष।


सपनों के इस सूने घर में,

हम हैं आज अकेले।

यहीं लगा करते थे जब तब,

सब खुशियों के मेले।।

अब यादों के अवशेष।

वो जाके बसे परदेश।।५।।

अपने जीवन कुछ शेष।

कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा, झीट, अम्लेश्वर,दुर्ग,छत्तीसगढ़


दिनांक १३.०३.२०२४