Sunday 19 February 2023

"ऋतुओं का राजा बहकने लगा है"

"ऋतुओं का राजा बहकने लगा है" 
झुकी आम डाली लगी बौर वाली, 
महुआ का आँगन महकने लगा है ।
चहूँ ओर भरने फूलों से दामन,
ऋतुओं का राजा बहकने लगा है ।। 

कोयल कुहुक कर पपिहे से बोली,
मयूरा का तन मन चहकने लगा है ।
मदमस्त सरसों पिली लजीली,
गुलाबों पे भँवरा भटकने लगा है ।। 

धानी चुँदरिया धरती ने ओढ़ी,
गगन मुसकुरा आज तकने लगा है ।
भँवरों की टोली रिझाने गुलों को,
मिलन गीत गाकर उचकने लगा है ।। 

फगुनाया मौसम महकी बयारें,
तन के अगन मन दहकने लगा है ।
जिन्हें प्यार वाली छुअन मिल न पाई,
मन आज उनका कसकने लगा है ।। 

गदराई टेसू पलासों की डाली,
पिया रस बसंती के चखने लगा है ।
भजन छोड़कर अब मिलन गीत गाते ,
कवि मन हमारा धधकने लगा है ।। 

खुशबू लुटाती पवन बह रही है,
चेहरा सभी का दमकने लगा है ।
बहारों की रौनक जिधर देखो मोहन,
मुहब्बत में जर्रा चमकने लगा है ।। 

झुकी आम डाली लगी बौर वाली.... 

मोहन श्रीवास्तव

"कुंडलिया"ऐसे ग्रंथों को पढें

"कुंडलिया"

ऐसे ग्रंथों को पढें, जो सिखलाते प्यार।
जिसमें हिंसा द्वेष हो,वो सब हैं बेकार।।
वो सब हैं बेकार, बनाते जो उन्मादी।
होता बंठाधार,विवादी और प्रमादी।।
जिससे फैले द्वंद, पढ़ें हम उनको कैसे।
उनपे हो प्रतिबंध, जहर जो बोए ऐसे।।

कवि मोहन श्रीवास्तव