"कुंडलिया"
ऐसे ग्रंथों को पढें, जो सिखलाते प्यार।
जिसमें हिंसा द्वेष हो,वो सब हैं बेकार।।
वो सब हैं बेकार, बनाते जो उन्मादी।
होता बंठाधार,विवादी और प्रमादी।।
जिससे फैले द्वंद, पढ़ें हम उनको कैसे।
उनपे हो प्रतिबंध, जहर जो बोए ऐसे।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
चाह नही मुझे ऐसी भेंट का, जब राहों में मैं फेंका जाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ ईनाम पुरष्कारों की नही चाह, जब नहीं मिले तो दुःख पाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ चाह मुझे उन अच्छे ईंषानों का, जिनके दिल मैं बस जाऊं । चाह मुझे उन सत्य पथिक का, जिनके चरणों में मैं चढ़ जाऊं ॥ चाह मुझे उन हवाओं का, जब मैं खुशबू उनके संग बिखराऊ । चाह मुझे भगवान के चरणों का, जहां हसते हसते मैं चढ़ जाऊं ॥ मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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