"ऋतुओं का राजा बहकने लगा है"
झुकी आम डाली लगी बौर वाली,
महुआ का आँगन महकने लगा है ।
चहूँ ओर भरने फूलों से दामन,
ऋतुओं का राजा बहकने लगा है ।।
कोयल कुहुक कर पपिहे से बोली,
मयूरा का तन मन चहकने लगा है ।
मदमस्त सरसों पिली लजीली,
गुलाबों पे भँवरा भटकने लगा है ।।
धानी चुँदरिया धरती ने ओढ़ी,
गगन मुसकुरा आज तकने लगा है ।
भँवरों की टोली रिझाने गुलों को,
मिलन गीत गाकर उचकने लगा है ।।
फगुनाया मौसम महकी बयारें,
तन के अगन मन दहकने लगा है ।
जिन्हें प्यार वाली छुअन मिल न पाई,
मन आज उनका कसकने लगा है ।।
गदराई टेसू पलासों की डाली,
पिया रस बसंती के चखने लगा है ।
भजन छोड़कर अब मिलन गीत गाते ,
कवि मन हमारा धधकने लगा है ।।
खुशबू लुटाती पवन बह रही है,
चेहरा सभी का दमकने लगा है ।
बहारों की रौनक जिधर देखो मोहन,
मुहब्बत में जर्रा चमकने लगा है ।।
झुकी आम डाली लगी बौर वाली....
मोहन श्रीवास्तव
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