Tuesday 6 July 2021

(विधाता छंद)"मुक्तक" ‌चली बेटी विदा होके,घराना रो रहा देखो ।

"मुक्तक"(विधाता छंद)
‌(ISSS  ISSS    ISSS  ISSS)

चली बेटी विदा होके,घराना रो रहा देखो ।
लिपट कर रो रही है माँ,ठिकाना रो रहा देखो ।।
विदाई हो गई जब तो,जिसे पत्थर सभी समझे ।
पिता के नैन सागर का, मुहाना रो रहा देखो ।।

मोहन श्रीवास्तव

(शार्दूलविक्रीडितम् छंद" आया है नववर्ष आज अपना, उल्लास ढेरों यहाँ।

"शार्दूलविक्रीडितम् छंद" 

आया है नववर्ष आज अपना, उल्लास ढेरों यहाँ।
चारों ओर सुगंध वायु बहती, नाचे मयूरा महा।।
बूढ़े बाल युवा सभी मगन हैं, नारी सुता भी सभी।
बैठी कोयल डाल पे विटप के,बोली सुनाती जहाँ।।1।। 

आया चैत्र नवीन शुक्ल प्रथमा, आनंद छाने लगे।
चारों ओर खिले हुए पुहुप है, प्यारे सुहाने लगे।।
धानी पल्लव पेड़ पे सज रहे, सारे दिवाने लगे।
भौरें चूस रहे प्रसून रस को, आमोद पाने लगे।।2।। 

आई है नवरात्रि पावन महा, माँ को सभी पूजते।
घंटा शंख बजे सदा भवन में,चारों दिशा गूँजते।।
ज्वारा दीपक नीर युक्त कलशा, माता मनायें सभी।
काटे विघ्न सुखी करें जगत को,जो रोग से जूझते।।3।। 

मोहन श्रीवास्तव

(मेनका छंद वर्णिक)"हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे"

(मेनका छंद वर्णिक)

"हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे" 

हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे।
आपसी व्यौहार वाले, दूर से ही हैं भगें।। 

रोग है संसार छाया, है दवाओं की कमी।
काल गालों मे समाते, लोग चारों ओर ही ।।
मौत की चारों दिशा से, आ रहे संदेश है।
हैं डरे से लोग भारी, जो अभी भी शेष हैं ।।
नेह-नाते और पैसा, पास होके भी ठगें।
हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे।।1।। 

सावधानी से रहो जी, गेह में ही लाक हो।
दूर से ही हाथ जोड़ो, नाक पे ही मास्क हो।।
साबुनों से हाथ धोयें, स्वच्छता का ध्यान हो।
गर्म पानी भाप लेके, नित्य काढ़ा पान हो।।
बात सारी जानके भी, लोग जो भी ना जगें।
हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे।।2।। 

चेत जाओ देख लीला, जो रचाए राम जी।
अक्ल आई हो कहीं तो, लो उसी का नाम जी ।।
खेल खेला काल ने तो, पात से काँपे सभी।
और ज्यादा रौद्र होगी, जो नहीं चेते अभी।।
छोड़ सारी व्यर्थ बातें, राम चर्चा में पगें ।
हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे।।3।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

(प्रमाणिका छंद वर्णिक) प्रणाम राम आपको

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  "प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।"
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("प्रमाणिका छंद"वर्णिक)
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लिए कमान चाप को।बुझाव आप ताप को।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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हरो समस्त पाप को। प्रणाम राम आपको।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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रमूँ महान नाम में। रहूँ कृपालु धाम में।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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समान शीत घाम में। रहूँ भरोस राम में ।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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प्रसून में पराग हैं। सितार चारु राग हैं।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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सुवास आप बाग हैं। मनोज नाश आग हैं।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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सरोज नेत्र सोहते। मुखारविन्द मोहते।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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विरक्त पंथ जोहते। समस्त दुष्ट को हते।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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जटा सजाय माथ में। सिया सदैव साथ में।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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विकास नाश हाथ में। सभी समाय नाथ में।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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अखंड हो निवासते। त्रिलोक को उजासते।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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प्रचंड दैत्य नाशते। उदार मंद हाँसते।।
प्रणाम राम आपको। प्रणाम राम आपको।।
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कवि मोहन श्रीवास्तव
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सृष्टि करे प्रतिकार है

"सृष्टि करे प्रतिकार है" 

धरती पर बढ़ गया आजकल, इतना पापाचार है।
पाप परायणता के कारण, सृष्टि करे प्रतिकार है।। 

पापों के फल को जाने बिन, जानबूझ कर पाप करें।
फिर अपनी गलती मानें बिन, पीछे बगुला जाप करें।।
धन पाने की विकट चाह में, भ्रात खून का प्यासा है।
छोटे से जीवन में पालें, अमर हेतु अभिलाषा है।।
मद्यपान कर कच्छ मच्छ ये, सारे दुष्टाहार हैं।
पाप परायणता के कारण, सृष्टि करे प्रतिकार है।।1।। 

दे गायों को नरक यातना, सब जीवों को मार रहे।
साधू संतो की हत्या कर, पागल से उन्माद बहे।।
देव मंदिरों की प्रतिमा को, खंड-खंड कर तोड़ रहे।
मात पिता की सेवा करने, से अपना मुख मोड़ रहे।।
ऐसों का ही श्राप मिला है, तब तो हाहाकार है।।
पाप परायणता के कारण, सृष्टि करे प्रतिकार है।। 
2।। 

करें कटाई नित पेड़ों की, जंगल सभी उजाड़ रहे।
दोहन करते नित्य भूमि का, पर्वत सीना फाड़ रहे।।
नदी तलाबों को अपने हित,धीरे धीरे पाट दिये।
सत्य सनातन को सदियों से, टुकड़े-टुकड़े बाट दिये।।
छोड़ बुराई करो भलाई, करती समय पुकार है।
पाप परायणता के कारण, सृष्टि करे प्रतिकार है।।3।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

(मेनका छंद) है पधारी ग्यानदेवी

"है पधारी ग्यान देवी"
(मेनका छंद "वर्णिक")

है पधारी ग्यान देवी, हाथ में वीणा धरे।
ग्यान का भंडार देके, भक्त की पीड़ा हरे।। 

हंस पे बैठी हुई है,  हाथ पोथी धार के।
श्वेत साड़ी है लपेटे, मोहिनी को डार के।। 

आसनी राजीव की है, कंठमाला मंजरी।
दे रही आशीष माता, जो पसारे अंजुरी।। 

लेखनी कोई उठाये, चेतना आलोक में।
दौड़ के आती विधाता, लोक से भू लोक में।। 

छोड़ के जो ईश चर्चा, व्यर्थ की बातें लिखे।
तो दुःखी होके विधात्री, क्रोध में जाती दिखे।। 

है पधारी ग्यान देवी, हाथ में वीणा धरे।
ग्यान का भंडार दे के, भक्त की पीड़ा हरे।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

("स्त्रग्धरा छंद" "वर्णिक")"शिव स्तुति""आई बारात द्वारे" हर हर महादेव

("स्त्रग्धरा छंद" "वर्णिक")
"शिव स्तुति"
"आई बारात द्वारे" हर हर महादेव

आई बारात द्वारे, हिम भवन यहाँ, लोग आमोद पायें।
कैलाशी हैं पधारे,डम डम डमरु, साथ में ले बजायें।।
नंदी पे है सवारी, जगतपति महा, शीस मौरा सजाये।
माथे पे चंद्र गंगा, हर हर करती, ध्वनि भारी सुहाये।।1।। 

बोली बोले अनोखे,  हर गण भुतहा, घोर लीला डरायें।
कोई नैना बिना है, मुख श्रवन नहीं, देख सारे परायें।।
ठाढ़े हैं देख बूढ़े, मन मन हंँसते, धीर धारो बतायें।
भोले के ये बराती, भवन मत भगो, व्याहने गौरि आये।।2।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

(उपेंद्रवज्रा छंद,वर्णिक)

(उपेंद्रवज्रा छंद,वर्णिक)

"काली स्तुति"
"महाकराली विकराल काली" 

महाकराली विकराल काली,कटार लेके लड़ने चली है।
निकाल जिव्हा गल मुंडमाला, निशाचरों को हनने चली है।। 

किये सवारी शवयान देखो, किरीटधारी धनु को चलाती।
गदा धरे है कर में भवानी, मलीन पापी दल को जलाती।। 

उदारदानी जय माँ भवानी, हरो सभी के दुःख दर्द सारे।
सिवा तुम्हारे जग में न कोई, रहें सदा ही मइया सहारे।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

वागीश्वरी सम्मान

देश की प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था वक्तामंच मानवता की सेवा और सम्मान के लिए प्रतिबद्ध संस्था है, जिसके द्वारा समाज के विविध विधाओं के सृजनकारों को सम्मानित करने की एक नैष्ठिक परम्परा चलायी जा रही हैं प्रतिभाओं का सम्मान किसी बढ़ते वृक्ष को खाद पानी देने और सेवा करने जैसा परम पावन कृत्य है । समाज में मनुष्यता और शुभता को प्रकाशित करने के लिए वक्तामंच का योगदान अतुलनीय है। वक्तामंच  के सभी समर्पित सेनानियों का शत् शत् वंदन हार्दिक अभिनंदन एवं "वागीश्वरी सम्मान" देने के लिए वक्ता मंच का बहुत बहुत आभार..

(महाभुजंग प्रयात सवैया,वर्णिक)"सती वियोग मे भगवान महादेव जी की दशा का वर्णन""भवानी बिना आज कैलाश सूना"

(महाभुजंग प्रयात सवैया,वर्णिक)
"सती वियोग मे भगवान महादेव जी की दशा का वर्णन"
"भवानी बिना आज कैलाश सूना" 
भवानी बिना आज कैलाश सूना,सती नाम लेके महादेव रोते।
करें याद सारी पुरानी कहानी,जली है सती सोच नैना भिगोते।।
हिया में सदा वो समाई हुई है, प्रिया सोच में नाथ आनंद खोते।
न जागें न सोयें न पीयें न खायें, गणों संग रोते मृगा मोर तोते।।1।। 

जटा जूट का भी नहीं ध्यान कोई, पुरारी लगें ज्यों गवायें हुए हैं।
जहाँ शंभु जाते सती साथ होती, व्यथा भाव यादें सवाये हुए हैं।।
हमेशा सताती उन्हें याद प्यारी, महाशोक कैलाश छाये हुए हैं।
बिना प्राणप्यारी वृथा जिंदगानी, यही सोच बाबा, झंँवाये हुए हैं।।2।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

ई मंच फाउंडेशन की ओर से आयोजित आनलाइन कवि सम्मेलन मे कवरेज करने के लिए दैनिक भास्कर समूह का बहुत बहुत आभार। इस कवि सम्मेलन में मै व मेरी श्रीमती शोभामोहन श्रीवास्तव के साथ कवि श्री सुनिल पांडेय, श्री राकेश अग्रवाल और रोशन अग्रवाल जी ने भाग लिया।https://fb.watch/63gr45vKNQ/

(मंदारमाला छंद,वर्णिक)'जीवन झूठा मृत्यु सत्य है'

(मंदारमाला छंद,वर्णिक)
'जीवन झूठा मृत्यु सत्य है'

"आया बुलावा पिया के यहां से" 

आया बुलावा पिया के यहां से, सभी छोड़ देखो चली जा रही।
डोली सजाई गई बांस की है, सभी रो रहे आप मुस्का रही।।
लपेटी हुई लाल साड़ी लजीली, सितारा जड़ी वो पिया भा रही।
पीछे उदासी भरे लोग जाते, सजी खूब डोली दुखी ढा रही।।1।। 

माता पिता और रोये सहेली, सभी प्रीत वाले, दुःखी याद में।
संसार वाला पिया रो रहा है, छुपाते हुए अश्रु को बाद में।।
सूने पड़े गांव के गैल सारे, सभी व्यस्त तेरे ही संवाद में।।
यादें पुरानी तुम्हें चाहते जो, पुकारा करें वे सभी नाद में।।2।। 

डोली रूकाई गई घाट पे है, चिता काठ पे है लिटाई गई।
दावाग्नि प्यारे सगा ने लगाये, लिए प्यार सच्चे पिया की भई।।
हाड़ा जले काठ की आग जैसे, जले चामड़ी घास जैसे जई।
प्यारी दुलारी पिया से मिली है, भुला नेह नाते पुराने कई।।3।। 

मोहन श्रीवास्तव

गंगोदक सवैया(राधा रानी का कृष्ण वियोग)

(गंगोदक सवैया, वर्णिक छंद)
(राधारानी का कृष्ण वियोग)

"रो रही राधिका" 

रो रही राधिका श्याम की याद में, और कोई उसे है सुहाता नहीं।
है बनी बाँवरी चैन खो के लली, हास उल्लास आनंद भाता नहीं।।
अर्कजा तीर बैठी हुई सोचती, क्यों पिया पत्र संदेश आता नहीं।
प्रात से साँझ होती प्रतीक्षा घनी, आ रहे श्याम कोई बताता नहीं।।1।। 

होश खोये हुए नैन खोजे पिया, केश फैले घने नैन आँसू भरे।
भूख लागे नहीं प्यास जागे नहीं, जेठ से ताप में प्रेयसी यूँ जरे।।
नींद आती नहीं याद जाती नहीं, भोर होते नदी तीर जाया करे।
वेदना अंग में है समाई हुई, श्याम संदेश दे कौन पीड़ा हरे।।2।। 

गीत प्यारे सुहाने सुनी जो कभी, बाँसुरी श्याम की याद आती रही।, 
हाथ में हाथ लेके चली साथ जो, प्रेम सारा पिया पे लुटाती रही।।
बोलती ठोलती हैं सखी आज तो, नैन नीचे किये वो लजाती रही।
मौन साधे हुए बैन से नैन से, नित्य आँसू बहा के बुलाती रही।।3।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

पर्यावरण मित्र सम्मान

आदरणीय राजेश पराते जी के कुशल नेतृत्व एवं कर्मठ सहयोगी आदरणीय शुभम साहू जी व वक्ता मंच के सभी पदाधिकारियों को नमन । जो मानवता की सेवा के लिए सदा समर्पित हैं। हमारे समाज को आज ऐसे ही मार्गदर्शी संस्थाओं की आवश्यकता है ।जो समाज को मानव कल्याण के लिए प्रेरित कर सके ।

वक्ता मंच अपने महान कर्मों के माध्यम से समाज मे सकारात्मक परिवर्तन सेवा व सम्मान करके अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर रही है ।ऐसे महान उद्देश्य वाली निःस्वार्थ सेवा भावी संस्था के सानिध्य मे हम स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते हैं।
 पौध रोपण के हमारे लघु प्रयास को "पर्यावरण मित्र सम्मान"  से पुरष्कृत कर बल देने के लिए   वक्तामंच आपका हार्दिक आभार।

🌹🌹🙏🙏🙏🌹
मोहन श्रीवास्तव

मंदारमाला छंद वर्णिक

(मंदार माला छंद "वर्णिक") 

"ध्याऊँ भजूँ राम के नाम को मैं" 

ध्याऊँ भजूँ राम के नाम को  मै, हिया और कोई नहीं नाम है ।
गाऊँ बना गीत मैं राम जी के, नहीं गीत कोई बिना राम है।
छाये सभी में समाये सभी में, बिना राम के ना कोई धाम है।
सौदा हमारा सभी है अधूरा, बिना राम कोई नहीं दाम है।।1।। 

आकाश पाताल पृथ्वी सभी में, दिखे जो जहाँ भी नजारे वही ।
शीतांशु आदित्य नक्षत्र तारे, बनाते वही हैं उझारे वही ।।
ब्रह्मा महादेव लक्ष्मीविलासी, सभी जीव के तो सहारे वही।
ब्रह्मांड के ये सभी काज भक्तो, बिगाड़े वही हैं सवाँरे वही ।।2।। 

माता पिता पुत्र भाई सगे हैं, सखा कंत प्यारे सभी नाथ है।
ऐसा नहीं ठाँव कोई कहीं भी, जहाँ आप स्वामी नहीं साथ हैं।।
है जीव सारे खिलौने तुम्हारे, झुकाये सभी ने तुम्हें माथ हैं।
गाना गवाना जगाना सुलाना, हँसाना रुलाना प्रभो हाथ हैं।।3।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्यमंडल की 24सवीं काव्य गोष्ठी

विगत रविवार को आचार्य इंजीनियर श्री अमरनाथ त्यागी जी और श्री सुनील पांडेय जी के कुशल मंच संचालन में छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्यमंडल द्वारा आयोजित आन लाइन विशेष काव्यगोष्ठी का ऐतिहासिक आयोजन किया गया।जिसकी विशेषता यह रही कि यह छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य मंडल की 24सौंवी काव्यगोष्ठी थी। जिसमें मेरी श्रीमती  शोभामोहन श्रीवास्तव जी के साथ मुझे भी भाग लेने का अवसर मिला।

Saturday 1 May 2021

स्त्रग्धरा छंद" "वर्णिक" "शिव स्तुति"


("स्त्रग्धरा छंद" "वर्णिक)
"शिव स्तुति"
"आई बारात द्वारे" 

आई बारात द्वारे, हिम भवन यहाँ, लोग आमोद पायें।
कैलाशी हैं पधारे,डम डम डमरु, साथ में ले बजायें।।
नंदी पे है सवारी, जगतपति महा, शीस मौरा सजाये।
माथे पे चंद्र गंगा, हर हर करती, ध्वनि भारी सुहाये।।1।। 

बोली बोले अनोखे,  हर गण भुतहा, घोर लीला डरायें।
कोई नैना बिना है, मुख श्रवन नहीं, देख सारे परायें।।
ठाढ़े हैं देख बूढ़े, मन मन में हंँसते, धीर धारो बतायें।
भोले के ये बराती, भवन मत भगो, व्याहने गौरि आये।।2।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव