Tuesday, 6 July 2021

(मेनका छंद) है पधारी ग्यानदेवी

"है पधारी ग्यान देवी"
(मेनका छंद "वर्णिक")

है पधारी ग्यान देवी, हाथ में वीणा धरे।
ग्यान का भंडार देके, भक्त की पीड़ा हरे।। 

हंस पे बैठी हुई है,  हाथ पोथी धार के।
श्वेत साड़ी है लपेटे, मोहिनी को डार के।। 

आसनी राजीव की है, कंठमाला मंजरी।
दे रही आशीष माता, जो पसारे अंजुरी।। 

लेखनी कोई उठाये, चेतना आलोक में।
दौड़ के आती विधाता, लोक से भू लोक में।। 

छोड़ के जो ईश चर्चा, व्यर्थ की बातें लिखे।
तो दुःखी होके विधात्री, क्रोध में जाती दिखे।। 

है पधारी ग्यान देवी, हाथ में वीणा धरे।
ग्यान का भंडार दे के, भक्त की पीड़ा हरे।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

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