("स्त्रग्धरा छंद" "वर्णिक")
"शिव स्तुति"
आई बारात द्वारे, हिम भवन यहाँ, लोग आमोद पायें।
कैलाशी हैं पधारे,डम डम डमरु, साथ में ले बजायें।।
नंदी पे है सवारी, जगतपति महा, शीस मौरा सजाये।
माथे पे चंद्र गंगा, हर हर करती, ध्वनि भारी सुहाये।।1।।
बोली बोले अनोखे, हर गण भुतहा, घोर लीला डरायें।
कोई नैना बिना है, मुख श्रवन नहीं, देख सारे परायें।।
ठाढ़े हैं देख बूढ़े, मन मन हंँसते, धीर धारो बतायें।
भोले के ये बराती, भवन मत भगो, व्याहने गौरि आये।।2।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
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