Tuesday, 6 July 2021

(मेनका छंद वर्णिक)"हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे"

(मेनका छंद वर्णिक)

"हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे" 

हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे।
आपसी व्यौहार वाले, दूर से ही हैं भगें।। 

रोग है संसार छाया, है दवाओं की कमी।
काल गालों मे समाते, लोग चारों ओर ही ।।
मौत की चारों दिशा से, आ रहे संदेश है।
हैं डरे से लोग भारी, जो अभी भी शेष हैं ।।
नेह-नाते और पैसा, पास होके भी ठगें।
हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे।।1।। 

सावधानी से रहो जी, गेह में ही लाक हो।
दूर से ही हाथ जोड़ो, नाक पे ही मास्क हो।।
साबुनों से हाथ धोयें, स्वच्छता का ध्यान हो।
गर्म पानी भाप लेके, नित्य काढ़ा पान हो।।
बात सारी जानके भी, लोग जो भी ना जगें।
हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे।।2।। 

चेत जाओ देख लीला, जो रचाए राम जी।
अक्ल आई हो कहीं तो, लो उसी का नाम जी ।।
खेल खेला काल ने तो, पात से काँपे सभी।
और ज्यादा रौद्र होगी, जो नहीं चेते अभी।।
छोड़ सारी व्यर्थ बातें, राम चर्चा में पगें ।
हाय कोरोना बिमारी, काल के जैसे लगे।।3।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव

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