"मुक्तक"(विधाता छंद)
(ISSS ISSS ISSS ISSS)
चली बेटी विदा होके,घराना रो रहा देखो ।
लिपट कर रो रही है माँ,ठिकाना रो रहा देखो ।।
विदाई हो गई जब तो,जिसे पत्थर सभी समझे ।
पिता के नैन सागर का, मुहाना रो रहा देखो ।।
चाह नही मुझे ऐसी भेंट का, जब राहों में मैं फेंका जाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ ईनाम पुरष्कारों की नही चाह, जब नहीं मिले तो दुःख पाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ चाह मुझे उन अच्छे ईंषानों का, जिनके दिल मैं बस जाऊं । चाह मुझे उन सत्य पथिक का, जिनके चरणों में मैं चढ़ जाऊं ॥ चाह मुझे उन हवाओं का, जब मैं खुशबू उनके संग बिखराऊ । चाह मुझे भगवान के चरणों का, जहां हसते हसते मैं चढ़ जाऊं ॥ मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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