"शार्दूलविक्रीडितम् छंद"
आया है नववर्ष आज अपना, उल्लास ढेरों यहाँ।
चारों ओर सुगंध वायु बहती, नाचे मयूरा महा।।
बूढ़े बाल युवा सभी मगन हैं, नारी सुता भी सभी।
बैठी कोयल डाल पे विटप के,बोली सुनाती जहाँ।।1।।
आया चैत्र नवीन शुक्ल प्रथमा, आनंद छाने लगे।
चारों ओर खिले हुए पुहुप है, प्यारे सुहाने लगे।।
धानी पल्लव पेड़ पे सज रहे, सारे दिवाने लगे।
भौरें चूस रहे प्रसून रस को, आमोद पाने लगे।।2।।
आई है नवरात्रि पावन महा, माँ को सभी पूजते।
घंटा शंख बजे सदा भवन में,चारों दिशा गूँजते।।
ज्वारा दीपक नीर युक्त कलशा, माता मनायें सभी।
काटे विघ्न सुखी करें जगत को,जो रोग से जूझते।।3।।
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