Wednesday 28 September 2011

सरकार चाहे कैसी भी बने


सरकार चाहे कैसी भी बने,
स्थिरता पहले आना है!
अशीक्षा -बेरोजगारी,व भ्रष्टाचार को,
हर जगह से हमे मिटाना है!!

मंहगाई पर काबू करना,व,
जन-जन मे सुरक्षा का माहौल बने!
सभी धर्म व जातियां मिलकर रहें ,
जो एकता की मिशाल बने!!

आदर-सम्मान सभी का हो,
महिलावों को उचित सम्मान मिले !
निष्पक्ष भाव से ही सबको ,
उचित न्याय व ईनाम मिले!!

बच्चे जो देश की भावी आशा,
उनके कल्याण के काम किए जाएं!
विधवा - वॄद्ध व बेसहारों के ,
पुनर्वास के प्रयास किए जाएं!!

देश प्रेम हो जन-जन मे भरा,
सभी को देश - भक्ति का पाठ पढाया जाए!
देश रक्षा मे जो लगे वीर,
उनका भी उत्साह बढ़ाया जाए!!

                                 मोहन श्रीवास्तव
                              दिनांक- ०८/१०/१९९९, शुक्रवार, समय- दोपहर १२.१५ बजे
                               चंद्रपुर(महाराष्ट्र)


अब नया जमाना तो इंडिया का है

जब घूंघट मे सिमटती थी नारी,
और पायल बजते थे पावों मे !
सर पे बेंदी व हाथ मे कंगन,
जब दिल बसते थे गांवों मे !!

धोती -कुर्ता -व पैजामे ,
सर पे पगड़ी व लम्बी मूंछे थे !
आभा से झलकते थे मुखमंडल,
उनके आदर्श तो कितने ऊंचे थे !!

यह चंद तश्वीर तो है ए भारत की,
अब नया जमाना तो इंडिया का है !
जब डिस्को-डिजी पे थिरकते हों कदम,
तो यह कमाल बिंदीया का है !!

चारों तरफ़ है लूट -पाट,
और  भ्रष्टाचार चरम पर है !
अंग प्रदर्शन अंग्रेजों जैसा,
बेहयाई तो कदम-कदम पर है !!

भारत की प्रतीष्ठा लगा दांव पर,
लीडर जेबों को भरते हैं !
झूठा भारत का जय बुलवाकर,
इंडियन होने का दम वे भरते हैं !!

अब नया जमाना तो.........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१९/०९/१९९९,
रविवार,समय-दोपहर-.४० बजे
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)

                         


जो कई शदियों तक हमे रूलाएंगे


भीषण कराल की ज्वाला मे,
 जब लोग झुलसते जाएंगे!
चीत्कार दिशावों मे गूंजेगा,
हर जगह मातम हम मनाएंगे!!

जो जहां रहेंगे वे वहीं खतम ,
कोई भाग नहीं सकता है वहां !
चंद मिनट पहले के हंसते स्थल,
परिवर्तित हो जाएंगे श्मशानों  मे वहां!!

लाशों के ढेर छितरे -बितरे ,
जिनके घर के घर स्वाहा होंगे !
कोइ -कोई ढुढेंगे अपनों को ,
पर हाथ निराशा ही लेंगे!!

यह चंद दॄश्य तो केवल गांवों का है ,
जहां दूर -दूर आबादी है!
बड़े शहरों की तो बात ही क्या ,
जिनकी किश्मत मे लिखा बर्बादी है!!

नागासाकी-हिरोशिमा के वे धमाके ,
जो बहुत छोटे जाने जाएंगे !
असली धमाके तब होंगे ,
जो कई शदियों तक हमे रूलाएंगे!!

                              मोहन श्रीवास्तव
                       दिनांक -३१/०८/१९९९ ,रात ११.५५ बजे
                        चंद्रपुर (महाराष्ट्र)

दुश्मनों के लिए तो आग हैं हम


इस हरे-भरे गुलशन के हम ,
रंग -विरंगे फ़ूल हैं!
खुशबू हैं इस जहां के हम,
और इस देश की पावन धूल हैं!!

एक सूत्र मे बंधे हैं हम ,
जो हार गले का बन जाते हैं!
अलग - अलग मज़हब के घरों के हैं,
मगर हम मिलने पर यार बन जाते हैं !!

मित्रों के गले मे हार हैं पर,
दुशमनों के गले मे सांप हैं हम !
आपस में उलझे पर हम मगर,
दुश्मनों के लिए तो आग हैं हम!!

प्यार से यदि कोई पिए हमें,
उनके लिए तो शहद हैं हम!
नफ़रत से हमे कोई पिए अगर,
उनके लिए तो ज़हर हैं हम!!

झुकते हैं हम उनके कदमों में ,
जो वतन पे प्राण गंवाते हैं  !
गोलियां बन जाते हैं हम उनके लिए ,
जो हमारी सीमा को आंख दिखाते हैं !!

                            मोहन श्रीवास्तव        
                             दिनांक -१५/०८/१९९९ ,रविवार,समय -शाम ६.२० बजे
                                     चंद्रपुर(महाराष्ट्र)

समझाना है तो ,पकियों को समझावो


दादावों का गुरू है भारत,
जहां बच्चा-बच्चा दादा है!
हम तुम्हे झुका सकते हैं मगर ,
हमें तो झुकना नही आता है!!

दो बिल्लियों की आपस की लड़ाई मे,
तुम बंदर बनना चाहते हो!
बे- वजह बिना बुलाए ही ,
हमारे अन्दर आना चाहते हो!!

समझाना है तो पाकियों को समझावो,
हमे समझाने की नही जरूरत है!
आतंकिवों का बादशाह है वो,
हम तो ममता की सी मूरत हैं!!

यह आपस की लड़ाई है अपनी,
हम आपस मे ही सुलझ लेंगे!
तुम बे-वज़ह टांग अड़ाते क्यूं हो,
हम इक - दूजे से निपट लेंगे!!

ज़ाल बिछा रहे हो अमरीका तुम ,
खुद ही ज़ाल में फ़ंस जावोगे!
हम आग हैं दुश्मनों के लिए ,
यदि हाथ डाले तो जल जावोगे!!

                            मोहन श्रीवास्तव
                         दिनांक -१२/०८/१९९९ ,बॄहस्पतिवार, समय-दोपहर ३ बजे
                         चंद्रपुर (महाराष्ट्र)

आज कितना है दिन ए सुहाना

आज कितना है दिन सुहाना,
अपनी मइया जी घर रही हैं
अपनी खुशियों का ना कोई ठिकाना,
वो अपने चरणों की रज ला रही हैं
आज कितना है दिन.......

आखें कब से बिछाये थे हमने,
अम्बे आयेंगी अपनी जिधर से
है दरश को ये कब से हैं प्यासे,
अम्बे आयेंगी जाने किधर से
आज कितना है दिन.......

लाल चोली मे लिपटी है माता,
सिंह पे है सवारी तो उनकी
अष्टभुजा धारी मेरी मइया,
हैं वो दुलारी तो हम सभी की
आज कितना है दिन.......

कर मे त्रिशूल, खप्पर है माँ के,
माथ पे माँ के चन्दा बिराजे
पुष्प का हार माँ के गले मे,
सोने का छत्र सिर पे है साजे
आज कितना है दिन.......

गई माँ है आज अपनी,
आओ आरती माँ के सब जन उतारो
हम गरीबों की झोली मे मइया,
अपने आशिष का वर तुम डारो

आज कितना है दिन सुहाना,
अपनी मइया जी घर रही हैं
अपनी खुशियों का ना कोई ठिकाना,
वो अपने चरणों की रज ला रही हैं
आज कितना है दिन.......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
01-08-1999,sunday,7.15pm,
chandrapur,maharashtra.