Wednesday 13 March 2024

वो जाके बसे परदेश

अपने जीवन कुछ शेष।

वो जाके बसे परदेश।।


जनमें बेटा-बेटी थे  जब,

हर्षित बापू माई।

चाचा चाची नाना नानी,

दादा दादी ताई।।

थी खुशियां बडी विशेष।

वो जाके बसे परदेश।।१।।

अपने जीवन कुछ शेष।


हमने जैसे तैसे जीकर,

उनको खूब पढ़ाया।

उनकी सुख सुविधा के खातिर,

अपना मान घटाया।।

उन्हें ना हो दुःख लव लेश।

वो जाके बसे परदेश।।२।।

अपने जीवन कुछ शेष।


पढ़ लिख कर जब योग्य हुए तो,

अपना व्याह रचाए।

दूर देश में जाकर के वे,

अपना गेह बसाए।।

लें मोबाइल सन्देश।

वो जाके बसे परदेश।।३।।

अपने जीवन कुछ शेष।


क्या क्या सोचे थे हम दोनों,

देखे थे सुख सपने।

अपना दुःख किसको बतलाएं,

छोड़ गए जब अपने।।

दिल में दिन रात कलेश।

वो जाके बसे परदेश।।४।।

अपने जीवन कुछ शेष।


सपनों के इस सूने घर में,

हम हैं आज अकेले।

यहीं लगा करते थे जब तब,

सब खुशियों के मेले।।

अब यादों के अवशेष।

वो जाके बसे परदेश।।५।।

अपने जीवन कुछ शेष।

कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा, झीट, अम्लेश्वर,दुर्ग,छत्तीसगढ़


दिनांक १३.०३.२०२४