Sunday 1 October 2023

(शार्दूल विक्रीडित छंद)जय दुर्गे मां "देवी स्तुति"

(शार्दूल विक्रीडित छंद)
जय दुर्गे मां 
"देवी स्तुति"
धारे हाथ दसो गदा धनु अनी, खड्गादि को धार के।
शूली चक्र भूषुण्डि शंख परिघा, माला गले मुंड के।।
सोए माधव क्षीर सागरमहा,ब्रह्मा थके सोच के।
दैत्यों में मधु कैटभादि अति बली,को कोई कैसे हने।।१।।

ध्यायें ब्रह्म प्रार्थना करत हैं,देवी महाकालिका।
मारे जो उस दैत्य को सरल से, देवी महा चंडिका।।
ध्याऊं मैं कमलासनी पर स्थिरा, साक्षात लक्ष्मी महा।
हाथों में जिनके गदा धनुष है,रुद्राक्ष माला तहां।।२।।

घंटा पद्म सुहाय बाण फरसा, देवी धरी शूल है।
धारी है कर कुंडिका कुलिस है,अंभोज आवर्त है।।
गौरी मातु शरीर से प्रकट है,मां शारदा मातु है।
ध्याऊं मैं तुम को प्रणाम करके, नाऊं सदा माथ है।।३।।
कवि मोहन श्रीवास्तव

Wednesday 6 September 2023

"कलाधर छंद"(श्रीकृष्ण जन्म)अर्ध रात्रि भाद्र मास

"कलाधर छंद"
(श्रीकृष्ण जन्म)
अर्ध रात्रि भाद्र मास कंत देवकी उदास,
नींद नैन में न आय सोच के बिताय है।
देवकी हुई अधीर होत है प्रसूति पीर,
नील कंज ज्योति पुंज सामने लखाय है।।
ज्योति पुंज होय बाल देवकी के गोद लाल,
ईश ने प्रभाव आप रात मे दिखाय है।
नींद आय द्वारपाल बेड़ियां खुली कराल,
रोय बाल जान पास सेन पुत्र आय है।।

देहु देहु मोहि लाल नाहिं मोर पास काल,
हो प्रिया नहीं उदास नंद धाम जान है।
हाथ जोरि बोलि नाथ मोहि ना करो अनाथ,
साँवरा सलोन लाल नाथ मोर प्राण है।।
पुत्र ले चले सुजान सूर्य पुत्रि मे उफान,
चाहती पखार पाँव ब्रम्ह जो महान है।
देखि श्याम प्रीत भाव सूप से निकाल पाँव,
भानुजा पखार पाँव शेष छत्र तान है।।
कवि मोहन श्रीवास्तव 

Monday 4 September 2023

आदि गुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित "गुरु अष्टकम" का भावानुवाद

आदि गुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित 

"गुरु अष्टकम" का भावानुवाद 

"महाभुजंग प्रयात सवैया"

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भले आपका गात हो रम्य चारू, प्रिया आपकी भी ललामा लगे है।

यशोकीर्ति चारों दिशा में बढ़े या, धनानादिकें मेरु जैसे पगे हैं।

सभी हो प्रिया पुत्र पौत्रादि द्रव्या, स्वसा भ्रातृ या गेह सारे सगे हैं।

हिया में न आचार्य के पांव पूजेँ , सभी व्यर्थ जानो सभी व्यर्थ जानो।।1।।


सभी वेद वेदांग जिह्वाग्र पे हों, रचें श्रेष्ठ काव्यादि गद्यादि को हैं।

मिले देश देशांतरों में प्रतिष्ठा ,चलें  वें  सदाचार के मार्ग पे हैं।।

यशोगान होता रहे नित्य चाहे, करें मान सम्राट आ व्यक्ति द्वारे।

हिया में न आचार्य के पांव पूजेँ , सभी व्यर्थ जानो सभी व्यर्थ जानो।।2।।


भलाई तथा दान जो भी करूं मैं, यशोकीर्ति हो व्याप्त चारों दिशाएं ।

सभी वस्तुएं लोक की जो गुणी हैं, सदा हाथ मेरे सभी वो सुहाएं।।

प्रिया हो ललामा धनानादि या हो, सभी वस्तुओं से हटे ध्यान मेरा।

हिया में न आचार्य के पांव पूजेँ , सभी व्यर्थ जानो सभी व्यर्थ जानो।।3।।


सभी ध्यान पूजा मिले सिद्धि सारे , विरागी बनूं मैं नहीं ये लुभाएं।

तजूं मोह शाला अरण्यादि का मैं, परे मैं रहूं दूर ना ये रिझाएं।।

स्वतः कामना नष्ट सारे हमारे, सभी व्यर्थ हैं ये बिना ये गुरू के।

हिया में न आचार्य के पांव पूजेँ , सभी व्यर्थ जानो सभी व्यर्थ जानो।।4।।

कवि मोहन श्रीवास्तव

दरबार मोखली, पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़

14.04.2023


Sunday 3 September 2023

छन्द : "चामर""है स्वतंत्र तंत्र और पुष्ट देश हो रहा"

छन्द : "चामर"

"है स्वतंत्र तंत्र और पुष्ट देश हो रहा"

रोम रोम में रहे सदा स्वदेश भावना।
राष्ट्रवाद से बड़ा विशेष हो न कामना।।

विश्व के गुरू बनें यही सदैव चाह हो।
देश हेतु वक्ष में सदा भरे उछाह हो।।

देश के सुता सपूत नित्य शोध को करें।
ज्ञान ध्यान से उड़ान अंतरिक्ष में भरें।।

व्योम सिन्धु भूमिलोक वा पहाड़ नापते।
हिन्द के जवान देख शत्रु झुण्ड कांपते।।

अंतरिक्ष रेल पोत वायुयान में बढ़ें।
एवरेस्ट कूट पे अनेक साहसी चढ़ें।।

वर्तमान हिन्द नित्य श्रेष्ठ मान पा रहा।
विश्व आज भारती पुराण वेद गा रहा।।

बेटियां चला रहीं सभी विमान यान हैं।
वेद शिल्प योग ज्ञान में सदैव ध्यान है।।

खेल कूद राजनीति अर्थ धर्म रीति में।
योगदान दे रहीं विदेश देश नीति में।।

नारि शक्ति राष्ट्र भक्ति में सदा लगी हुई।
सैन्य की कमान थाम अस्त्र से सजी हुई।।

भूमिपुत्र खेत में करें नए प्रयोग हैं।
नित्य यन्त्र से अगाध्य शस्य लेत लोग हैं।।

योजना किसान हेतु भांति भांति के बने।
लाभ लें अपार मोद में रहें बने ठने।।

और योजना अनेक लोक लाभ के लिए।
उच्च स्वास्थ लाभ प्राप्ति से सभी सुखी जिएं।।

अन्न लाभ देश के सुपात्र लोग पा रहे।
द्रव्यलाभ से नवीन रोजगार आ रहे।।

नीर गैस दामिनी सदैव लब्ध आज है।
राष्ट्र भक्ति में प्रवृत्त हो रहा समाज है।।

ज्ञान केंद्र में अनेक शोध नित्य हो रहे।
जाति पात ऊंच नीच पंथ भेद खो रहे।।

जो निवासहीन थे मिले उन्हें निवास हैं।
राष्ट्र के विकास के लिए सभी प्रयास हैं।।

यान उच्च कोटि और श्रेष्ठ मार्ग हैं बने।
भारतीय विश्व में गर्व से खड़े तने।।

भिन्न भिन्न यान आज अंतरिक्ष मे उड़े।
भौम चंद्र सूर्य भेज शुक्र यान भी खड़े।।

शासकीय तन्त्र से अनेक काम हो रहे।
देश के ललाट के कलंक और धो रहे।।

चीन क्षीण हीन और पाक दीन रो रहा।
है स्वतंत्र तंत्र और पुष्ट देश हो रहा।।

ध्वस्त बाबरी हुआ अभीष्ट काम हो गए।
दिव्य भव्य धाम में प्रविष्ट राम हो गए।।

ज्ञानवापि काशिनाथ मार्ग भी प्रशस्त है।
कृष्ण जन्म भूमि मुक्ति हेतु भक्त व्यस्त हैं।।

विश्व आज श्रेष्ठ राम नाम गीत गा रहा।
कृपालु राम चन्द्र का सनेह नित्य पा रहा।।

कवि मोहन श्रीवास्तव

Thursday 17 August 2023

(मत्तगयंद सवैया)"कृष्ण उद्धव संवाद"

(मत्तगयंद सवैया)
"कृष्ण उद्धव संवाद" जय श्री कृष्ण 

आज उदास लगें घनश्यामहि, नैनन नीर झरे अति भारी।।
देखि रहे जमुना जल को बस, सोचन लागि रहे बनवारी।।
पूछत दीनदयाल को उद्धव, क्यों विकलाय रहे गिरधारी।
काय करूं दुःख को प्रभु नाशन, मोहि कहो झट से अघहारी।।1।।
 
बात सुनें जब हैं मन मोहन, रोअत रोअत हैं बतलाए।
देखहु पीर भरो जमुना जल, गोकुल याद मुझे अति आए।।
रोय रहा दिन रात उहां ब्रज, अश्रु प्रवाहित हो यह आए।
 नंदबबा यशुदा मइया सब, जीव बिना मम हैं अकुलाए।।2।।

रोय रही बृषभानुलली सब, गोप गुआरिन रोअत भारी।
मीत सभी जन रोय रहे अरु, धेनु नहीं सब लेत अहारी।।
पुष्प लता मुरझाय रहे सब, पेड़ बने अति दीन भिखारी।
रोय रही सखियां बगिया पशु, होय गई यमुना
अपि खारी।।3।।

रोय रही यशुदा मइया अरु नन्द बबा रटते हरि नामा।
हाथ धरे सिर मित्र दुखी सब, भद्र सुभद्र रसाल सुदामा।।
पाहन हो बृषभानुलली चुप चाप बुझाय न शीत न घामा।
भोरि भई सुधि खोय रही नित सूझ रहा नहि है कछु कामा।।4।।

वृक्ष निराश उदास खड़े सब बेल लता कुम्हलाय रहे हैं।
कोयल कूक नहीं करती अब मेघ नहीं बरसाय रहे हैं।
सांझ बिहान नहीं खग कूजत शावक ना पगुराय रहे हैं।
काय करूं दुख हो कम उद्धव नैनन नीर बहाय रहे हैं।।5।।

कवि मोहन श्रीवास्तव

Saturday 22 July 2023

समाचार पत्र

नाचा सम्मान समारोह बेबीलोन होटल रायपुर

पण्डित सुन्दर लाल शर्मा अलंकरण सम्मान शोभामोहन श्रीवास्तव जी को

त्रिवेणी नाग पुस्तक विमोचन समारोह

हमारे कान्हा जी

त्रिवेणी नाग पुस्तक विमोचन




त्रिवेणी नाग पुस्तक विमोचन






त्रिवेणी नाग पुस्तक विमोचन