कई उम्मीदवारों के अब,
किस्मत के दरवाजे बन्द हुये हैं ।
सभी के दिल धक-धक करते,,
और कल्पना के सागर मे मस्त हुए हैं ॥
अब जीत हमारी ही होगी,
यह सब के दिल मे आशा होगा ।
गुप-चुप अपने आराध्य देव से ,
विजयी होने का मनौती माना जाता होगा ॥
हर रोज सुगन्धित अगर बत्ती की और,
असली घी के दिये जलाते होंगे ।
दिन रात जीत की माला जपते और,
अपने ईश्वर-अल्लाह से मनाते होंगे ॥
अब सब्र का बांध तो टुटने लगा,
और परीक्षा फल निकट आ रहा है ।
चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगी,
पर मन मे जीत तो आ रहा है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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15-09-1999,wednsday,midnight1.05
am,
chandrapur,maharashtra.