Thursday 8 March 2012

रंग लगावो प्यार से उनको

भंग के रस को पी के यारों,
होली खूब मनावो !
रहते हो धरती पे तुम,
पर आकाश मे उड़ते जावो !!

शिव-भोले की बूटी है ये,
पियो और पिलावो !
रंग -बिरंगी होली को,
हसते हुए मनावो !!

गले मिलो तुम उन लोगों से,
जो दुश्मन तुम्हे समझते हैं !
रंग लगावो प्यार से उनको,
जो बिन बादल के बरसते हैं !!

चार दिनों का जीवन है अपना,
हंस- मिल के इसे गुजारो !
नफ़रत को जड़ से मिटा करके,
प्यार से इसे संवारो !!

होली के रंगो जैसे ही,
अपने दिल से दिल को मिलावो !
ईन्षानियत की राह पे चलके,
दुश्मन को भी गले लगावो !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com

१३--२०००,चंद्रपुर महा.



जनता की जेल

भारत माता के वोटों के लाल,
अब अपनी निद्रा दूर करो !
इस डरी हुई सहमी जनता को,
और अधिक ना मजबुर करो !!

वादे जो-जो- किए थे तुमने हमसे,
उससे तुम ना मुकर जावो !
सत्ता की अन्धी दौड़ मे तुम कहीं,
देश  की राह से ना भटक जावो !!

दुनिया के देशों को देखो,
जो आगे दर आगे बढ़ रहे है !
पर हम आपस मे लड़कर,
उनसे और पिछड़ रहे है !!

व्यक्तिगत हितों को भुला करके,
अब भारत के हित की सोच करो !
आर्थिक, सामाजिक,बैग्यानिक क्षेत्र मे,
तुम तरह तरह के खोज करो !!

इस देश कि भोली जनता के दिलों से,
और अधिक ना खिलवाड़ करो !
वोटों का खेल अभी रहे हो खेल,
पर जनता की जेल से मगर डरो !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
१७//१९९९,शनिवार,रात्रि, बजे,

चन्द्रपुर,महा.