Saturday 25 February 2023

होगी जब उनसे मुलाकात मेरी

होगी जब उनसे मुलाकात मेरी, दो दिल खुशियों से यूं भर जाएंगे।

उनके स्वागत में फूल कलियां क्या, अपने पलकों को हम बिछाएंगे।। 

होगी जब उनसे........

अब तक जो गम सहे जुदाई के, उन्हें हम दोनों भूल जाएंगे।

होंगी बातें सभी इशारों में, वो पल कैसे भी ठहर जाएंगे।।

होगी जब उनसे............

चूड़ियां खनखनाएंगी मेरी, कंगन मेरे तो गुनगुनाएंगे।

धड़कनें बाँसुरी सी गायेंगी, दो वदन प्यार में नहाएंगे।।

होगी जब उनसे..........

माथे पे बूंदे कुछ पसीने की, चाँदनी जैसे झिलमिलाएंगे।

मेरे बिखरे हुए से लट होंगे, हर अदा से उन्हें रिझाएंगे।।

होगी जब उनसे........

पायल पावों में छनछनायेंगी, झुमके मेरे तो खिल खिलाएंगे।

सांसे दोनों की बस ये बोलेंगी, हम कभी दूर नहीं जाएंगे।।

होगी जब उनसे........

रातें होंगी मेरी दीवाली सी,दिन तो होली का हम मनाएंगे।

भोर होते ही फूलों की खुशबू, शाम दीपों से जगमगाएंगे।।

 होगी जब उनसे मुलाकात मेरी.........


कवि मोहन श्रीवास्तव

Friday 24 February 2023

हमे गर्व बहुत उन पर,वे पिता हमारे हैं"

"हमे गर्व बहुत  उन पर,वे पिता हमारे हैं"


हम सबके प्यारे हैं, इस जहां से न्यारे हैं ।

हमें गर्व बहुत उन पर,वे पिता हमारे हैं ॥



जब गर्भ में मैं आया,माँ तो खुश थी मेरी ।

पर पिता के दिल को तो, खुशियों ने घेरी॥


उन्हें खुशी मिली भारी, जब जनम हुआ मेरा।

जब रोता था मैं कभी, उन्हें दर्द ने तब घेरा।।


जब पापा हमनें बोला,तो पिता बहुत थे प्रसन्न।

माँ से कहते तब वो,मैं आज हो गया धन्य ॥


जब मैं नन्हा सा था,वे मुझे कंधे पे बिठाते थे।

थपकी देके मुझको, सीने पे सुलाते थे ॥


जब बड़ा हुआ मैं तो, मुझे विद्द्यालय  भेजा ।

शिक्षक से कहा उनने,इसे अच्छी शिक्षा देना ॥


हम सबके लिए कपड़े,, वे नए दिलाते थे ।

रिश्ते नातों का,निज फर्ज निभाते थे ॥


हम सब अच्छा पढ़ लें,सब काम किया करते ।

हमें सुख मे रखकर के, वे दुःख को सहा करते ॥


हो घर-परिवार सुखी,बस चाह सदा उनकी ।

मैं कितना भी दुःख झेलूं,पर हो परिवार सुखी ॥


पढ़ लिख कर योग्य बना, मेरा व्याह रचाए थे।

इक नई-नवेली दुल्हन,मेरे लिये तो लाये थे ॥


पर पापा कांप गए,बेटी की बिदाई में ।

जो हर पल ध्यान रखती, पापा की दवाई में।।


हर बाप का ये सपना,मेरा बेटा सहारा बने ।

दो गज के कफन से वो,मेरे शव को तो ढक दे ॥


मेरी अर्थी उठा करके,मुझे कंधा तो दे-दे ।

मेरे अन्त क्रिया को वो,अच्छे से तो कर दे ॥


मैं बिदा हो रहा हूं, निज फर्ज निभाया है ।

तुम सब खुश रहना,अब बाप पराया है ॥


अपनी माँ का ख्याल रखना,मेरी प्राणों से प्यारी का ।

दुःख-सुख जो साथ सहे,मेरी दिल की दुलारी का ॥


वे हम सबके प्यारे हैं,वे इस जहां से न्यारे हैं ।

हमें गर्व बहुत उन पर,वे पिता हमारे हैं ॥


मोहन श्रीवास्तव 


16-03-2013,02:00AM,Sunday,(862)



Wednesday 22 February 2023

"शिव स्तुति""अश्वधाटी छंद"


"शिव स्तुति"

"अश्वधाटी छंद"

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आए त्रिलोचन रमाए भभूत तन भाए ललाट शशि हो।

खाए धतूर हर पिए हलाहल बनाए श्मशान घर हो।।

ध्याए सियापति बढ़ाए जटा सिख लुभाए सुजान मन हो।

खेएँ तरी शिव मिटाए सभी दुःख दिलाएं महान सुख हो।।


धारे त्रिशूल मतवारे भुजंग जयकारे करें सब जने। 

जारे अनंग रखवारे चराचर अधारे व्यथा सब हने।।

न्यारे वही जग अधारे सदाशिव पुकारे उद्धार करने।

प्यारे गिरीश जग तारे तुम्ही व  पधारे बियाधि हरने।।2।।


धारी किरीट शशि वारी उमा उजियारी महान छवि हो।

भारी महेश सुखकारी सुजान दुखहारी महान कवि हो।।

तारी भुलोक मदनारी लजात करतारी महान रवि हो।

हारी उमा हिय पियारि लगे शिव पुरारी महान हवि हो।।3।।

जारी सती तन पियारी महेश सुकुमारी पिता हवन में।

प्यारी उमा गिरि कुमारी गणेश महतारी बसे भवन में।।

धारी कपर्दक उदारी सुरेश अवतारी फिरे भुवन में।

घोरी विलक्षण सवारी बना वृष  पुरारी रहें अवन में।।4।।


दानी शिरोमणि शिवानी सुजान पति बानी कहे रसभरी।

ध्यानी गिरीश वरदानी जटाधर दिवानी लगे गिरि परी।।

ज्ञानी महाप्रभु सयानी उमा सह मशानी रटे नित हरी।

भीनी सुगंध हर धानी उमा पट कहानी सती शिव खरी।।5।।

कवि मोहन श्रीवास्तव 

रचना क्रमांक:- 1308

Rewised 20.02.2023

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Sunday 19 February 2023

"ऋतुओं का राजा बहकने लगा है"

"ऋतुओं का राजा बहकने लगा है" 
झुकी आम डाली लगी बौर वाली, 
महुआ का आँगन महकने लगा है ।
चहूँ ओर भरने फूलों से दामन,
ऋतुओं का राजा बहकने लगा है ।। 

कोयल कुहुक कर पपिहे से बोली,
मयूरा का तन मन चहकने लगा है ।
मदमस्त सरसों पिली लजीली,
गुलाबों पे भँवरा भटकने लगा है ।। 

धानी चुँदरिया धरती ने ओढ़ी,
गगन मुसकुरा आज तकने लगा है ।
भँवरों की टोली रिझाने गुलों को,
मिलन गीत गाकर उचकने लगा है ।। 

फगुनाया मौसम महकी बयारें,
तन के अगन मन दहकने लगा है ।
जिन्हें प्यार वाली छुअन मिल न पाई,
मन आज उनका कसकने लगा है ।। 

गदराई टेसू पलासों की डाली,
पिया रस बसंती के चखने लगा है ।
भजन छोड़कर अब मिलन गीत गाते ,
कवि मन हमारा धधकने लगा है ।। 

खुशबू लुटाती पवन बह रही है,
चेहरा सभी का दमकने लगा है ।
बहारों की रौनक जिधर देखो मोहन,
मुहब्बत में जर्रा चमकने लगा है ।। 

झुकी आम डाली लगी बौर वाली.... 

मोहन श्रीवास्तव

"कुंडलिया"ऐसे ग्रंथों को पढें

"कुंडलिया"

ऐसे ग्रंथों को पढें, जो सिखलाते प्यार।
जिसमें हिंसा द्वेष हो,वो सब हैं बेकार।।
वो सब हैं बेकार, बनाते जो उन्मादी।
होता बंठाधार,विवादी और प्रमादी।।
जिससे फैले द्वंद, पढ़ें हम उनको कैसे।
उनपे हो प्रतिबंध, जहर जो बोए ऐसे।।

कवि मोहन श्रीवास्तव

Thursday 16 February 2023

यमुनाष्टकम" हिंदी भावानुवाद आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित छंद - पञ्चचामर

"यमुनाष्टकम" हिंदी भावानुवाद 

आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित

छंद - पञ्चचामर

लिए सदैव कृष्णचंद्र गात अंगनीलिमा,

त्रिलोक शोक हारिणी जलौघ रम्यधारिणी।

तृणादि के समान स्वर्गलोक तुच्छ जानके,

निकुंजपुंज गूँज गूँज पार गर्वहारिणी।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।१।। 


मलापहारि नीर के समूह से सुशोभती,

महानपापनाशिनी सदैव मुक्तिदायिनी।।

सुरम्य नंदलाल अंगस्पर्श युक्तराग से,

नवीन प्रेमयुक्त भक्तमंडली हितायनी।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।२।। 


सुहावनी तरंग संग अंग के हिलोर से,

समस्त पाप जीव के पखारती विहारिणी।

नवीन माधुरी सुभक्त चातकादिवृंद को,

कगार पास भक्तरूप हंसवंश तारिणी।।३।। 


सभी सदैव पूजते कगार पास जो रहे,

सुभक्त पूर्णकाम में अमोघसिद्धियाँ भरे।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।४।। 


विहाररास वेदना थकान हेतु तीर पे,

समीर मंद मंद गंध संग में प्रवाहिणी।

गुणादिगान शब्द से न रम्यनीर हो सके,

प्रवाह संग जो करे सदा धरा सुपावनी।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।५।। 


तरंग संग बालुकामयी लगे कगार से,

सदैव मध्यभाग कृष्णचंद्र रंग शोभती।

समान शीतकाल चंद्ररश्मि दिव्यमंजरी,

समस्त विश्व तुष्ट चारुवारि जीव लोभती।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।६।। 


करे सुरम्य राधिका किलोल अंगराग से,

दयानिधान कृष्ण अंगस्पर्श वारि भीतरी।

अलभ्य अन्य के लिए जिसे सदैव भोगती,

सदा प्रवाह मात्र धूम सप्तसिंधु सुन्दरी।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।७।। 


गिरे दयानिधान अंगराग वारि में घुले,

प्रभा बढ़े स्वकीय अंगस्नान जो करें सखी।

गुँथी लटें सुरम्य चंचलीषु राधिका प्रिये,

सदैव चंपकादि हार सा लगे गला सुखी।।८।। 


सदैव स्नान नित्य कृष्णदास नारदादि भी,

करे दयालु भानुजा कृपासुपात्र पे करे।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।९।। 


खिले लता अधीश्वरी कगार पे सुहावनी,

सुरम्य रम्यवाटिका सदैव कृष्ण खेल से।

कदम्बपुष्प के पराग से सफेद हो रही,

उबार विश्व सिन्धु हो मनुष्य स्नान मेल से।।१०।। 

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव


सेमरी पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़

06.02.2023

12.10 दोपहर

Wednesday 15 February 2023

राष्ट्र जागृति लहर


राष्ट्र जागृति लहर, आई अब घर-घर

हर हिंदू खड़ा हुआ लेकर मशाल है।

झूठे इतिहास पर, मुगलों के त्रास पर

निडर होके आज वो करता सवाल है।।

बोल बम हर हर, राम जी की जय कर

देश के विरोधियों को करता बेहाल है।

सेकुलर थरथर, कांप रहे देखकर

खून में सनातनी के जब से उबाल है।।

कवि मोहन श्रीवास्तव