हम सबके प्यारे हैं, इस जहां से न्यारे हैं ।
हमें गर्व बहुत उन पर,वे पिता हमारे हैं ॥
जब गर्भ में मैं आया,माँ तो खुश थी मेरी ।
पर पिता के दिल को तो, खुशियों ने घेरी॥
उन्हें खुशी मिली भारी, जब जनम हुआ मेरा।
जब रोता था मैं कभी, उन्हें दर्द ने तब घेरा।।
जब पापा हमनें बोला,तो पिता बहुत थे प्रसन्न।
माँ से कहते तब वो,मैं आज हो गया धन्य ॥
जब मैं नन्हा सा था,वे मुझे कंधे पे बिठाते थे।
थपकी देके मुझको, सीने पे सुलाते थे ॥
जब बड़ा हुआ मैं तो, मुझे विद्द्यालय भेजा ।
शिक्षक से कहा उनने,इसे अच्छी शिक्षा देना ॥
हम सबके लिए कपड़े,, वे नए दिलाते थे ।
रिश्ते नातों का,निज फर्ज निभाते थे ॥
हम सब अच्छा पढ़ लें,सब काम किया करते ।
हमें सुख मे रखकर के, वे दुःख को सहा करते ॥
हो घर-परिवार सुखी,बस चाह सदा उनकी ।
मैं कितना भी दुःख झेलूं,पर हो परिवार सुखी ॥
पढ़ लिख कर योग्य बना, मेरा व्याह रचाए थे।
इक नई-नवेली दुल्हन,मेरे लिये तो लाये थे ॥
पर पापा कांप गए,बेटी की बिदाई में ।
जो हर पल ध्यान रखती, पापा की दवाई में।।
हर बाप का ये सपना,मेरा बेटा सहारा बने ।
दो गज के कफन से वो,मेरे शव को तो ढक दे ॥
मेरी अर्थी उठा करके,मुझे कंधा तो दे-दे ।
मेरे अन्त क्रिया को वो,अच्छे से तो कर दे ॥
मैं बिदा हो रहा हूं, निज फर्ज निभाया है ।
तुम सब खुश रहना,अब बाप पराया है ॥
अपनी माँ का ख्याल रखना,मेरी प्राणों से प्यारी का ।
दुःख-सुख जो साथ सहे,मेरी दिल की दुलारी का ॥
वे हम सबके प्यारे हैं,वे इस जहां से न्यारे हैं ।
हमें गर्व बहुत उन पर,वे पिता हमारे हैं ॥
मोहन श्रीवास्तव
16-03-2013,02:00AM,Sunday,(862)
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