Monday 28 November 2011

मा सरस्वति वन्दना(मुझे ग्यान दो)



आप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें व आप सब पर ग्यान की देवी माँ सरस्वति की कृपा सदा बनी रहे......

वीणा वादिनी मातु शारदा,सरस्वती,तेरा नाम !
ग्यान की देवी मइया मेरी,पुरे करो मेरे काम !!

मुझे ग्यान दो हे ग्यान देवी,भक्त तुमको पुकारता !
हे मातु तेरी चरण रज को ये दास पाना चाहता !!

हे मइया मेरी ममतामई,वाणी पे सबके बिराजती !
हे मातु मेरी वाणी को भी,क्यु नही हो तारती !!

ये वक्त है अनमोल मा,जो खत्म होता जा रहा !
इतने दिन से मइया मेरी,अब तक मै सोता रहा !!

हम हर परीक्षा  की घड़ी मे याद करते है तुझे !
तुम पास कर देती हो सबको,जो याद करते है तुझे !!

हम ग्यान हीन है,बुद्धि दुर्बल,तव भक्ति से हम दूर है !
मेरी मइया मेरा मन सदा,अग्यान से भरपुर है !!

हे मातु इस अग्यान को,मेरे मन से शीघ्र तू दूर कर !
तुम हम अभागे दास के मन,सद्ग्यान से भरपुर कर !!

तुम्हरी कॄपा हम चाहते,हे मा उदार दया करो !
संकट मे है मा आज हम,हमे बुद्धि का भन्डार दो !!

ये मेरी आखिरी ख्वाहिश है,मा हम सदाचारी बने!
सद्ग्यान और सदबिचार से,हम परोपकारी बने!!
मुझे ग्यान दो हे ग्यान देवी.................

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
दिनांक-/१०/१९९१ ,मंगलवार ,शाम -.१५ बजे,

एन.टी.पी.सी. ,दादरी, गाजियाबाद ,(.प्र.)

आखिरी अरमान(अन्त समय मे प्रभु जी मेरे)

अन्त समय मे प्रभु जी मेरे,
 अपना दर्शन देना !
तन से प्राण मेरे जब भी निकले,
उसकी खबर तुम लेना !!
अन्त समय मे................

मरते समय मुझे माया न व्यापे
मोह को नष्ट कर देना
अपने कर और पद से प्रभु जी
मेरे सर को छू लेना
अन्त समय मे..............

आखिरी श्वांश तक ध्यान हो तेरा
नील गगन तले तन हो मेरा
हसते-हसते नाम ले तेरा
ऐसे ही प्रभु उड़े प्राण मेरा
अन्त समय मे.............

आखिरी क्षण मे प्रभु जी मेरे
चार भुजा धर आना
कर मे अपने गदा चक्र और
कमल पुष्प को लाना
अन्त समय मे.........

साथ मे अपने,माँ लक्ष्मी संग
क्षीर निधी से आना
पुष्पहार की माला पहने
पिताम्बर धर आना
अन्त समय मे...........

गंगा नदी के सुन्दर तट पर
मेरे प्राण को हरना
मेरी अन्तिम इच्छा यही है
प्रभु जी दरश तुम देना
अन्त समय मे...........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -२८/९/१९९१,
शनिवार,शाम-७.२० बजे,

एन.टी.पी.सी,दादरी,गाजियाबाद,(उ.प्र.)

तुमको है जब से देखा

तुमको है जब से देखा,मेरा दिल नही है लगता !
तेरी प्यारी-प्यारी सुरत ,लगता है चांद जैसा !!

नखरे तुम्हारे मुझको कैसे ये प्यारे लगते !
हम सोच -सोच करके हैं रात-रात जगते !!

तेरी ज़ुल्फ़ की हवाए, मदहोश कर रही है !
तेरी चाल से ये दुनिया कैसी ये डर रही है !!

तुम हो कली नई सी,गुलाबी तुम्हारी गाले !
मेरा जी चाहता है कैसे भे तुमको पालें !!

पतली कमर तुम्हारी ,लगती हो जैसे नागिन !
ये पलके जो तुम्हारे,लगते हैं रात और दिन !!

शिशे का तन है तेरा, और रंग है बदामी !
तेरी बोल कोयल जैसी,नशिली है ये जवानी !!

तेरे होठ सिपी जैसे,और दांत मोतियों का !
तेरे बाल रेशमी सी,और आखे हिरे जैसा !!

नाजुक तेरी कलाई,जैसे कमल का पौधा !
अनमोल तेरी काया,जिसका नही है सौदा !!

कश्मीर जैसी सुन्दर दिल है तेरा हिमालय !
नमकीन तेरा गुस्सा और खुशुबु फ़ूल जैसा !!

दुइज की चाद तेरा भौं,और सुरज मुखी सा चेहरा !
रहती हो परियों जैसी,जिसका कोई नही है डेरा !!

तिखे नाक-नक्शे वाली,तेरा कोई नही है उपमा !
गुड़िया हो मोम जैसी,बर्फ़िली कोई प्रतिमा !!

हम पिछे पड़े हैं तेरे हमको बना लो अपना!
बाहों मे मेरी आवो,मै देखूं तेरा सपना!!
तुमको है जब से देखा................

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -२६//१९९१ ,बॄहस्पतिवार ,रात , बजे,

एन.टी.पी,सी,दादरी ,गाजियाबाद (.प्र.)