Thursday 17 August 2023

(मत्तगयंद सवैया)"कृष्ण उद्धव संवाद"

(मत्तगयंद सवैया)
"कृष्ण उद्धव संवाद" जय श्री कृष्ण 

आज उदास लगें घनश्यामहि, नैनन नीर झरे अति भारी।।
देखि रहे जमुना जल को बस, सोचन लागि रहे बनवारी।।
पूछत दीनदयाल को उद्धव, क्यों विकलाय रहे गिरधारी।
काय करूं दुःख को प्रभु नाशन, मोहि कहो झट से अघहारी।।1।।
 
बात सुनें जब हैं मन मोहन, रोअत रोअत हैं बतलाए।
देखहु पीर भरो जमुना जल, गोकुल याद मुझे अति आए।।
रोय रहा दिन रात उहां ब्रज, अश्रु प्रवाहित हो यह आए।
 नंदबबा यशुदा मइया सब, जीव बिना मम हैं अकुलाए।।2।।

रोय रही बृषभानुलली सब, गोप गुआरिन रोअत भारी।
मीत सभी जन रोय रहे अरु, धेनु नहीं सब लेत अहारी।।
पुष्प लता मुरझाय रहे सब, पेड़ बने अति दीन भिखारी।
रोय रही सखियां बगिया पशु, होय गई यमुना
अपि खारी।।3।।

रोय रही यशुदा मइया अरु नन्द बबा रटते हरि नामा।
हाथ धरे सिर मित्र दुखी सब, भद्र सुभद्र रसाल सुदामा।।
पाहन हो बृषभानुलली चुप चाप बुझाय न शीत न घामा।
भोरि भई सुधि खोय रही नित सूझ रहा नहि है कछु कामा।।4।।

वृक्ष निराश उदास खड़े सब बेल लता कुम्हलाय रहे हैं।
कोयल कूक नहीं करती अब मेघ नहीं बरसाय रहे हैं।
सांझ बिहान नहीं खग कूजत शावक ना पगुराय रहे हैं।
काय करूं दुख हो कम उद्धव नैनन नीर बहाय रहे हैं।।5।।

कवि मोहन श्रीवास्तव