Thursday, 16 February 2023

यमुनाष्टकम" हिंदी भावानुवाद आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित छंद - पञ्चचामर

"यमुनाष्टकम" हिंदी भावानुवाद 

आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित

छंद - पञ्चचामर

लिए सदैव कृष्णचंद्र गात अंगनीलिमा,

त्रिलोक शोक हारिणी जलौघ रम्यधारिणी।

तृणादि के समान स्वर्गलोक तुच्छ जानके,

निकुंजपुंज गूँज गूँज पार गर्वहारिणी।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।१।। 


मलापहारि नीर के समूह से सुशोभती,

महानपापनाशिनी सदैव मुक्तिदायिनी।।

सुरम्य नंदलाल अंगस्पर्श युक्तराग से,

नवीन प्रेमयुक्त भक्तमंडली हितायनी।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।२।। 


सुहावनी तरंग संग अंग के हिलोर से,

समस्त पाप जीव के पखारती विहारिणी।

नवीन माधुरी सुभक्त चातकादिवृंद को,

कगार पास भक्तरूप हंसवंश तारिणी।।३।। 


सभी सदैव पूजते कगार पास जो रहे,

सुभक्त पूर्णकाम में अमोघसिद्धियाँ भरे।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।४।। 


विहाररास वेदना थकान हेतु तीर पे,

समीर मंद मंद गंध संग में प्रवाहिणी।

गुणादिगान शब्द से न रम्यनीर हो सके,

प्रवाह संग जो करे सदा धरा सुपावनी।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।५।। 


तरंग संग बालुकामयी लगे कगार से,

सदैव मध्यभाग कृष्णचंद्र रंग शोभती।

समान शीतकाल चंद्ररश्मि दिव्यमंजरी,

समस्त विश्व तुष्ट चारुवारि जीव लोभती।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।६।। 


करे सुरम्य राधिका किलोल अंगराग से,

दयानिधान कृष्ण अंगस्पर्श वारि भीतरी।

अलभ्य अन्य के लिए जिसे सदैव भोगती,

सदा प्रवाह मात्र धूम सप्तसिंधु सुन्दरी।।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।७।। 


गिरे दयानिधान अंगराग वारि में घुले,

प्रभा बढ़े स्वकीय अंगस्नान जो करें सखी।

गुँथी लटें सुरम्य चंचलीषु राधिका प्रिये,

सदैव चंपकादि हार सा लगे गला सुखी।।८।। 


सदैव स्नान नित्य कृष्णदास नारदादि भी,

करे दयालु भानुजा कृपासुपात्र पे करे।

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।।९।। 


खिले लता अधीश्वरी कगार पे सुहावनी,

सुरम्य रम्यवाटिका सदैव कृष्ण खेल से।

कदम्बपुष्प के पराग से सफेद हो रही,

उबार विश्व सिन्धु हो मनुष्य स्नान मेल से।।१०।। 

खिले शरीरकंज दृष्टिपात स्नान जो करे।

मनोविकार दास के कलिंदनंदिनी हरे।। 

कवि मोहन श्रीवास्तव


सेमरी पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़

06.02.2023

12.10 दोपहर

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