(मंदारमाला छंद,वर्णिक)
'जीवन झूठा मृत्यु सत्य है'
"आया बुलावा पिया के यहां से"
आया बुलावा पिया के यहां से, सभी छोड़ देखो चली जा रही।
डोली सजाई गई बांस की है, सभी रो रहे आप मुस्का रही।।
लपेटी हुई लाल साड़ी लजीली, सितारा जड़ी वो पिया भा रही।
पीछे उदासी भरे लोग जाते, सजी खूब डोली दुखी ढा रही।।1।।
माता पिता और रोये सहेली, सभी प्रीत वाले, दुःखी याद में।
संसार वाला पिया रो रहा है, छुपाते हुए अश्रु को बाद में।।
सूने पड़े गांव के गैल सारे, सभी व्यस्त तेरे ही संवाद में।।
यादें पुरानी तुम्हें चाहते जो, पुकारा करें वे सभी नाद में।।2।।
डोली रूकाई गई घाट पे है, चिता काठ पे है लिटाई गई।
दावाग्नि प्यारे सगा ने लगाये, लिए प्यार सच्चे पिया की भई।।
हाड़ा जले काठ की आग जैसे, जले चामड़ी घास जैसे जई।
प्यारी दुलारी पिया से मिली है, भुला नेह नाते पुराने कई।।3।।
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