"सृष्टि करे प्रतिकार है"
धरती पर बढ़ गया आजकल, इतना पापाचार है।
पाप परायणता के कारण, सृष्टि करे प्रतिकार है।।
पापों के फल को जाने बिन, जानबूझ कर पाप करें।
फिर अपनी गलती मानें बिन, पीछे बगुला जाप करें।।
धन पाने की विकट चाह में, भ्रात खून का प्यासा है।
छोटे से जीवन में पालें, अमर हेतु अभिलाषा है।।
मद्यपान कर कच्छ मच्छ ये, सारे दुष्टाहार हैं।
पाप परायणता के कारण, सृष्टि करे प्रतिकार है।।1।।
दे गायों को नरक यातना, सब जीवों को मार रहे।
साधू संतो की हत्या कर, पागल से उन्माद बहे।।
देव मंदिरों की प्रतिमा को, खंड-खंड कर तोड़ रहे।
मात पिता की सेवा करने, से अपना मुख मोड़ रहे।।
ऐसों का ही श्राप मिला है, तब तो हाहाकार है।।
पाप परायणता के कारण, सृष्टि करे प्रतिकार है।।
2।।
करें कटाई नित पेड़ों की, जंगल सभी उजाड़ रहे।
दोहन करते नित्य भूमि का, पर्वत सीना फाड़ रहे।।
नदी तलाबों को अपने हित,धीरे धीरे पाट दिये।
सत्य सनातन को सदियों से, टुकड़े-टुकड़े बाट दिये।।
छोड़ बुराई करो भलाई, करती समय पुकार है।
पाप परायणता के कारण, सृष्टि करे प्रतिकार है।।3।।
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