चाह नही मुझे ऐसी भेंट का, जब राहों में मैं फेंका जाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ ईनाम पुरष्कारों की नही चाह, जब नहीं मिले तो दुःख पाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ चाह मुझे उन अच्छे ईंषानों का, जिनके दिल मैं बस जाऊं । चाह मुझे उन सत्य पथिक का, जिनके चरणों में मैं चढ़ जाऊं ॥ चाह मुझे उन हवाओं का, जब मैं खुशबू उनके संग बिखराऊ । चाह मुझे भगवान के चरणों का, जहां हसते हसते मैं चढ़ जाऊं ॥ मोहन श्रीवास्तव (कवि)
Wednesday, 18 January 2023
(घनाक्षरी) "शिव वंदना" आदि देव महादेव,जिन्हें सेवें सभी देव, ऐसे भोलेनाथ जी का रूप तो निराला है। क्षण में होते प्रसन्न,भक्तों को करे धन्य, शिव नाम तमस में करता उजाला है।। सीस सोहे चंद्र गंग,भभूति रमाए अंग, पत्नी पार्वती देवी गणपति जी लाला हैं। हरि ध्यान करें हर,जगत की पीड़ा हर, कालों का भी महाकाल वो डमरू वाला है।। कवि मोहन श्रीवास्तव
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