पण्डित सुंदर लाल शर्मा
(सरसी छंद)
त्याग तपस्या के थे मूरत, पंडित सुंदर लाल ।
छत्तीसगढ़ दाई के गोदी, को कर गए निहाल ।।
पंडित जी का महलनुमा घर, चमसुर नामक गाँव ।
धन दौलत की कमी नहीं थी, महानदी की छाँव ।।
खेत सैकड़ों एकड़ जिसमें, आम जाम के बाग ।
पंक्षी तोता मैना कोयल, मिलकर छेड़ें राग ।।
सोन अंगूठी सदा पहनते, सोना जड़ित लिबास ।
घर में रहकर किये पढ़ाई, काशी गुरु से खास ।।
छंदबद्ध कविताएं लिखते, उनका हृदय उदार ।
कई बार वे जेल गए थे, पर ना माने हार ।।
रचे दान लीला पंडित जी, जिसमें गोपी श्याम ।
प्रेम भक्ति का मिश्रण लिखकर, अमर कर गए नाम ।।
अव्वल नंबर के थे जिद्दी, जिद्द ही उनका पंथ ।
रात रात भर जाग जाग कर, लिखे अठारह ग्रंथ ।।
नये नये तकनीकों का वे, करते सदा प्रयोग ।
भब्य जलाशय बाँध बनाकर, करते थे उपयोग ।।
जौ गेहूं को पिसवाते थे, पनचक्की से आप ।
छुआछूत का भेद मिटाने, सहे बहुत संताप ।।
छत्तीसगढ़ में रोपा पद्धति, लाए थे श्रीमान ।
प्रगतिशील खेतिहर का उनको, मिला बड़ा सम्मान ।।
छुआछूत के घोर विरोधी, सब मेंं देखें राम ।
दलित प्रवेश कराए मंदिर, राजिम लोचन धाम ।।
अंग्रेजों ने जलकर थोपा, उसका किये विरोध ।
तब कंडेल गांव में जाकर, लिए उचित प्रतिशोध ।।
वस्तु स्वदेशी अपनाने को, बेचे संपत्ति खेत ।
आखिर मेंं कंगाल हो गए, राष्ट्र धर्म के हेत ।।
अंत समय मेंं दुर्दिन देखे, मगर न टूटे आप ।
हरि का सुमिरन करते करते, भोगे सब दुख ताप ।।
एक ही कुर्ता एक ही धोती, बचा हुआ था पास ।
सिल सिल कर उसे पहनते, जब निकला था श्वाँस ।।
ऋणी रहेगा भारत उनका, छत्तीसगढ़ की शान ।
करता है मोहन पग वंदन, सुंदर लाल महान ।।
त्याग तपस्या के थे मूरत, पंडित सुंदर लाल ।
छत्तीसगढ़ दाई के गोदी, को कर गए निहाल ।।
मोहन श्रीवास्तव
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