Wednesday, 18 January 2023

पण्डित सुंदर लाल शर्मा

पण्डित सुंदर लाल शर्मा 

(सरसी छंद)


त्याग तपस्या के थे मूरत, पंडित सुंदर लाल ।

छत्तीसगढ़ दाई के गोदी, को कर गए निहाल ।।


पंडित जी का महलनुमा घर, चमसुर नामक गाँव ।

धन दौलत की कमी नहीं थी, महानदी की छाँव ।।


खेत सैकड़ों एकड़ जिसमें, आम जाम के बाग ।

पंक्षी तोता मैना कोयल, मिलकर छेड़ें राग ।।


सोन अंगूठी सदा पहनते, सोना जड़ित लिबास ।

घर में रहकर किये पढ़ाई, काशी गुरु से खास ।।


छंदबद्ध कविताएं लिखते, उनका हृदय उदार ।

कई बार वे जेल गए थे, पर ना माने हार ।।


रचे दान लीला पंडित जी, जिसमें गोपी श्याम ।

प्रेम भक्ति का मिश्रण लिखकर, अमर कर गए नाम ।।


अव्वल नंबर के थे जिद्दी, जिद्द ही उनका पंथ ।

रात रात भर जाग जाग कर, लिखे अठारह ग्रंथ ।।


नये नये तकनीकों का वे, करते सदा प्रयोग ।

भब्य जलाशय बाँध बनाकर, करते थे उपयोग ।।


जौ गेहूं को पिसवाते थे, पनचक्की से आप ।

छुआछूत का भेद मिटाने, सहे बहुत संताप ।।


छत्तीसगढ़ में रोपा पद्धति, लाए थे श्रीमान ।

प्रगतिशील खेतिहर का उनको, मिला बड़ा सम्मान ।।


छुआछूत के घोर विरोधी, सब मेंं देखें राम ।

दलित प्रवेश कराए मंदिर, राजिम लोचन धाम ।।


अंग्रेजों ने जलकर थोपा, उसका किये विरोध ।

तब कंडेल गांव में जाकर, लिए उचित प्रतिशोध ।।


वस्तु स्वदेशी अपनाने को, बेचे संपत्ति खेत ।

आखिर मेंं कंगाल हो गए, राष्ट्र धर्म के हेत ।।


अंत समय मेंं दुर्दिन देखे, मगर न टूटे आप ।

हरि का सुमिरन करते करते, भोगे सब दुख ताप ।।


एक ही कुर्ता एक ही धोती, बचा हुआ था पास ।

सिल सिल कर उसे पहनते, जब निकला था श्वाँस ।।


ऋणी रहेगा भारत उनका, छत्तीसगढ़ की शान ।

करता है मोहन पग वंदन, सुंदर लाल महान ।।


त्याग तपस्या के थे मूरत, पंडित सुंदर लाल ।

छत्तीसगढ़ दाई के गोदी, को कर गए निहाल ।।


मोहन श्रीवास्तव


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