(महाभुजंगप्रयात सवैया)
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करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।
प्रभो आप ब्रम्हांड के हो विधाता,
तुम्हें मैं महादेव माथा नवाऊंँ।
सभी रूप व्यापी तपस्वी यशस्वी,
तुम्हें वेदरूपी रिझाऊँ मनाऊंँ।।
सदा मोह से दूर दातार शंभू,
दिशावस्त्रधारी गुणातीत गाऊँ।
भजूँ आपका नाम दाता पुरारी,
महाकाल भैरौ सदा माथ नाऊँ।।१।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।
निराकार ओंकार के मूल स्वामी,
परे ज्ञान इंद्रीय वाणी प्रभो हो।।
महाकाल के काल स्वामी गुणी हो,
परे आप संसार से भी विभो हो।।२।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।
लगे गात गौरीय नागेश जैसे,
करोड़ों प्रभो मीनकेतू लजाये।
गले सर्पमाला जटा शीशगंगा,
सदा माथ पे दूज चंदा सुहाये।।३।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।
हिले कान में कुंडलें दीर्घ नैना,
महादेव हो नीलकंठी दयालू।
गले मुंडमाला सभी के हितैषी,
भजूँ नित्य बाघाम्बरी हे कृपालू।।४।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।
करोड़ों विवस्वान को हैं लजाते,
भजूंँ मैं सती के पती शूलधारी।
हरो व्याधि सारे महादेव भोले,
अजन्मा अखंडा प्रचण्डा पुरारी।।५।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।
परे आप स्वामी कला आदि से हो,
सभी सज्जनों को सदा मान देते।
हरो मोहमाया भजे आपको जो,
लुटा हर्ष से ज्ञान सम्मान देते।।६।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।
भजे आपको जो नहीं हे कपाली,
जरे ताप में वो नहीं शांति पाये ।
सभी जीव में आपका वास स्वामी,
सदा आप संतुष्ट होना सहाये।।७।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।
नहीं जानता योग पूजा पिनाकी,
तुम्हें सर्वदा नाथ माथा नवाऊँ।
बुढ़ापा तथा जन्म के चक्करों के,
दुखों के महादेव मैं पार पाऊंँ।।८।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।
किए प्रार्थना विप्र जो शंभु से हैं ,
महादेव संतुष्ट होके सहाए।
करे भक्त जो पाठ रुद्राष्टकम का,
सदा शंभु आशीष वो भक्त पाए।।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।
करूं अर्चना वंदना हे पुरारी।।9।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
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