Tuesday, 24 June 2025

छंद:- चंचरीक (चर्चरी छन्द)“माता काली स्तुति “

छंद:- चंचरीक (चर्चरी छन्द)

“माता काली स्तुति “


कालिका कराल काल, जीभ है निकाल लाल, नैनों में अग्नि ज्वाल, असुरों को मारे l

कंठ धार मुंडमाल, हाथ में लिए मशाल , जोर जोर फाड़ गाल, अरि दल संहारे ll

योगिनी समान चाल, है त्रिपुण्ड दिव्य भाल,कटि में है व्याघ्र खाल, क्रोध से पुकारे l

पैंजन झनक ताल,हाथ में कटार ढाल, लाल लाल पुष्प माल, पापियों को जारे ll1ll


लाश यान पे सवार, जोर से करे प्रहार,सीस देह से उतार, दिखती विकराली l

दुष्ट धृष्ट मार मार, संतों को तार तार, भक्त हेतु है उदार,योगिनी कंकाली ll

देवि के हैं विखरे केश, कंत हैं सदा महेश, धारती प्रचण्ड वेश,रौद्र रूप काली l

मातु जीभ लपलपात, दाँत तिब्र कटकटात, कँठ धार दैत्य आँत,जय माता काली ll2ll


करती है रक्त पान, लेती है दैत्य प्राण, फिरती है वह मसान,तन भभूत धारी l

भूत प्रेत साथ साथ, धारी त्रिशूल हाथ,त्रिनेत्र धार माथ, शम्भु प्राण प्यारी ll

करती है अट्टहास, देख दुष्ट झुण्ड लास,मंद मंद जात हास, संत क्लेश हारी l

बार बार किलकिलात,शोणित से भीग गात,मुखड़ा है तम तमात, सीस चंद्र धारी ll3ll


कवि मोहन श्रीवास्तव

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