होली की शुभकामना, आप सभी को मीत।
वैर भाव सब दूर कर, गले लगो धर प्रीत।।
गले लगो धर प्रीत, अबीर गुलाल लगाओ।
हिंसा ईर्ष्या द्वेष, सभी मिल दूर भगाओ।।
खाओ गुझिया भांग, माथ पे चन्दन रोली।
मोहन कहता आज, आप सब को शुभ होली।।
चाह नही मुझे ऐसी भेंट का, जब राहों में मैं फेंका जाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ ईनाम पुरष्कारों की नही चाह, जब नहीं मिले तो दुःख पाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ चाह मुझे उन अच्छे ईंषानों का, जिनके दिल मैं बस जाऊं । चाह मुझे उन सत्य पथिक का, जिनके चरणों में मैं चढ़ जाऊं ॥ चाह मुझे उन हवाओं का, जब मैं खुशबू उनके संग बिखराऊ । चाह मुझे भगवान के चरणों का, जहां हसते हसते मैं चढ़ जाऊं ॥ मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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