आ जावो मेरे बादल,
तेरा ही सहारा है ।
तपती हुई गर्मी है,
इसिलिये पुकारा है ॥
सब जीव तो गर्मी से,
दिन रात तप रहे हैं ।
बारिस की आश मे देखो,
पल-पल तो जी रहे हैं ॥
धरती है सुख रही,
पानी बिन सब व्याकुल ।
कहीं पीने को पानी नही,
कहीं प्यास से सब आकुल ॥
पानी के लिये देखो,
आपस मे लड़ते हैं ।
अब बरसो हे बादल,
हम विनती करते हैं ॥
तन से देखो सबके,
बहता तो पसीना है ।
बेदर्दी गर्मी से ,
मुश्किल तो जीना है ॥
घनघोर घटा घेरो,
जी भर के तुम बरसो ।
बारिस की बूंदों से,
सब को तो सुखी कर दो ॥
आ जावो मेरे बादल,
तेरा ही सहारा है ।
तपती हुई गर्मी है,
इसिलिये पुकारा है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२७-५-२०१३,सोमवार,
रात्रि ९.३० बजे,पुणे,महा.
8 comments:
sundar prastuti, dil k sundar pukar
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
धन्यवाद
व्यथा
कहीं जल नहीं और कहीं जल ही जल ...........
जल जीवन का आधार ..... मिल कर करो आभार
aziz bhai ji,
aapka dil se aabhar
Dil bag wirke ji.
aapne meri is kavita ko apne charcha manch ke hruday patal par jagah dene ke liye chuna hai,aapka dil se aabhar.
अरुणा जी
सादर आभार
सावन कुमार जी,
आप का आभार
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