तुम्हे खिलता हुआ, गुलाब कहूं ।
या मै छलका हुआ, शराब कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
तुम्हे पिघला हुआ मै, मोम कहूं ।
या चांदनी रात की, चकोर कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
तुम्हें रिमझिम सा, बरसता हुआ,बरसात कहूं ।
या मै पूनम की तुम्हें, रात कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
तुम्हे जलता हुआ, मै आग कहूं ।
या वीणा की कोई, राग कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
आई मौशम मे, तुम्हे बहार कहूं ।
या तो फूलों की, झुकती डार कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ, गुलाब कहूं ।
या मै छलका हुआ, शराब कहूं ॥
तुम्हे खिलता हुआ....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-06-2013,11.15
am,saturday,
in
pune-bilaspur express train
8 comments:
सुन्दर रचना
सादर
बेहतरीन ग़ज़ल... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....!!
bahut sundar...
Yashoda Agrawal ji,
aapaka dil se aabhar
Ranjana Verma ji.
aapka hriday se aabhar......
Mahesh Barmateji,
sadar aabhar
कह तो दिया आपने ...और क्या खुब .......... आभार
सावन कुमार जी,
जो दिल मे आया वो लिख दिया,भाई सुन्दरता का वर्णन कभी भी पुरी तरह से नही किया जा सकता.धन्यवाद
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