शिशे का तन व बदन तेरा,
नागिन जैसी तुम चलती हो !
राहो मे ठंडी हवा जैसी,
और परियों सा रूप बदलती हो !!
मुखड़ा गुलाब सा है तेरा,
तुझमे चंदन की खुशबू समा जाता !
तुझे देख-देख के क्या हम कहे,
पूनम का चांद भी शर्माता !!
तेरी मुस्कान से वो यारा,
कलिया भी फ़ूल बन जाते हैं !
तेरे बोलने से ये गुलशन सारा,
खुशबू के फ़ूल बरसाते हैं !!
तेरी आंखो मे है कैसा नशा,
तुम चलती-फ़िरती मधुशाला हो !
होठों का रंग गुलाबी सा,
रातों मे दिन का उजाला हो !!
तेरी झलक कोई भी देखे तो,
बेचैन सा वो हो जाता है !
मोहन की तरह तेरे सपनों मे,
वो रह-रह के खो जाता है !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक-१३/०९/२०००,वुद्धवार,रात-११.२० बजे,
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)
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