कोई कैसे जी पाए,
इस घुटन भरी मंहगाई मे !
जो चाहे वो ना मिल पाए,
इस पुण्य कि देखो कमाई मे !!
हर एक चीज मे आग लगी है ,
चाहे राशन-तेल व गोभी हो !
फ़ल व दूध की बात ही क्या,
ये मिले तभी जब कोई रोगी हो !!
देशी घी के जगह अब,
बनस्पति घी से काम है चल जाता !
शरबत की जगह देखो अब,
चाय से काम है निकल जाता !!
पगार मिलने के पहले ही,
लम्बी लीस्ट बनी रहती !
मकान किराया व अनेको बिल से ,
लीस्ट हमेशा सजी रहती !!
पैसे खतम हो जाते है मगर,
फ़र्माईस खत्म नही होते !
इस कमर तोड़ मंहगाई मे ,
लोगों के दिल रोते रहते !!
सच्चाई पे चलने वालों का,
बुरा हाल है हो जाता !
पर बेईमानी के पैसों से ,
हर चीज सुलभ है हो जाता !!
पर हर पाप का अंत बुरा होता है,
और इसमें फूलों से कांटे उगते हैं ।
सत्य तो सत्य होता है मित्रों,
जहां कांटो से भी फूल ही खिलते हैं ॥
सत्य तो सत्य होता है मित्रों,
जहां कांटो से भी फूल ही खिलते हैं......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -१५/१२/२००३ ,रात-००.४५ बजे,
नामक्कल (तमिलनाडु)
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