हर दिल में आतंक और दहशत ,
मन में डर बहुत समाया है |
जल रहा आज मेरा बस्तर ,
सीने में दर्द छिपाया है ||
कभी अमन-चैन बसता था जहां ,
सब दिन सब रात सुहाने थे |
रहते थे सब बिन डर -भय के ,
कितने रंगीन ज़माने थे ||
पर सब कुछ सपना सा वो हुआ ,
अब हर पल मौत का साया है ||
जल रहा आज मेरा बस्तर ,
सीने में दर्द छिपाया है ||
कुछ लोग नक्सली बन करके ,
वे खून की होली खेल रहे |
इनके जुल्मों को बस्तरिया ,
और वीर जवान हैं झेल रहे ||
दो पाटों के बीच पीस रहे ,
कहीं चैन आराम न पाया है ||
जल रहा आज मेरा बस्तर ,
सीने में दर्द छिपाया है ||
शासन के विकास की गंगा को ,
नक्सली हैं बहने नहीं देते |
जो इनकी बात नहीं माने ,
उन्हें चैन से रहने नहीं देते ||
जीवन जीना है वहां मुश्किल ,
अब लगे ये प्रीत पराया है ||
जल रहा आज मेरा बस्तर ,
सीने में दर्द छिपाया है ||
जहाँ ढोल -नगाड़े बजते थे ,
पक्षी का कलरव होता था |
दिन भर थका हुआ बस्तर ,
जहाँ प्यार की नीद में सोता था ||
अब बारूदी बम्ब धमाकों से ,
सारा बस्तर गुंजाया है ||
जल रहा आज मेरा बस्तर ,
सीने में दर्द छिपाया है ||
मोहन श्रीवास्तव ( कवि )
रचना क्रमांक;- (1076),30/05/2018,tuesday,
in yashawant pur -lucknow express train.
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