कालिका कराल काल, गले नर मुण्डमाल
करती रुधिर पान और अट्हास है |
जिव्हा ज्वलिनी ज्वाल, नयना हैं लाल लाल
शत्रुओं का प्रतिपल करती विनाश है ||
भक्तों की करती जय, पापियों की करे क्षय
रक्तबीज जैसों से बुझाती निज प्यास है |
भक्तों के लिए है ढाल, वैरियों के लिए काल
महाकाली हमको तो तुमपे ही आस है ||
कवि मोहन श्रीवास्तव
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