Sunday, 5 March 2023

महादेव की होली, मत्तगयंद सवैया। कवि मोहन श्रीवास्तव

खेल रहे शिव नाथ हिमालय, संग भुजंग सभी गण होली।
भांग धतूर हलाहल पीकर , शंभु निकाल रहे बहु बोली।।।।
खूब मनाय रहीं गिरिजा पर, बाउर आज भए त्रिपुरारी।
हासत रोवत गावत नाचत, भागि रहे चहु ओर दुआरी।।1।।
बाल गणेश उमा सह कार्तिक, तीनहु लोग मनाय रहे हैं।
शांत रहो हुड़दंग करो जनि, पाहुन वे मुसुकाय रहे हैं।।
मांगत  भांग धतूर सदाशिव, मातु उमा समुझाय रही हैं।
घूंघट में गुझिया भजिया पति , स्नेह समेत खिलाय रही हैं।।2।।
नाग करें फुफकार दनादन, प्रेत पिशाच महागण नाचें।
रंग अबीर उड़ाय रहे नभ, शंभु कथा मुख से निज बांचे।।
गंग हुई मनमुग्ध दशा लखि, प्राणपिया बउराय गए हैं।
मोद तरंग उड़ेल रही सिर, चंद्र प्रभा बिखराय रहे हैं ।।
कवि मोहन श्रीवास्तव

No comments: