Kavya Pushpanjali By Mohan Srivastava (Poet)
चाह नही मुझे ऐसी भेंट का, जब राहों में मैं फेंका जाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ ईनाम पुरष्कारों की नही चाह, जब नहीं मिले तो दुःख पाऊं । मैं तो अपनी डाली में मस्त हूं, जहां हंसते हंसते मैं मर जाऊं ॥ चाह मुझे उन अच्छे ईंषानों का, जिनके दिल मैं बस जाऊं । चाह मुझे उन सत्य पथिक का, जिनके चरणों में मैं चढ़ जाऊं ॥ चाह मुझे उन हवाओं का, जब मैं खुशबू उनके संग बिखराऊ । चाह मुझे भगवान के चरणों का, जहां हसते हसते मैं चढ़ जाऊं ॥ मोहन श्रीवास्तव (कवि)
Monday, 13 May 2024
भोजपुरी (मोर संवरिया मोर बतिया........)
Tuesday, 2 April 2024
हाय रे घोटालेबाज
"हाय रे घोटालेबाज"
हाय रे घोटालेबाज, दारू वारू के दलाल,
आखिर में पहुंच गया तू तो तिहाड़ में।
बड़ी बड़ी कर बात, देश से तू किया घात ,
भ्रष्टाचारी देशद्रोही अब जा तू भाड़ में।
मिटायेंगे भ्रष्टाचार, बोल बोल के गद्दार,
पर तूं भी जाके मिला, चोरों की कबाड़ में।
गड़बड़ झालावाला वाला , बन गया दारू वाला,
देश द्रोह करता था, नेता गिरी आड़ में।।
फट गया तेरा ढोल, खुल गई सारी पोल,
बच्चा बच्चा जान गया तेरे इस खेल को।
तेरे साथ मिले और, कई बड़े बड़े चोर,
तेरे आगे पीछे सब जा रहे हैं जेल को।।
तूं तो ना किसी का सगा, सब को है तूने ठगा ,
मुफतखोरी की दौड़ा रहा था तू रेल को।
सब लोग जान गए, तुझे पहचान गए,
तिल तिल तरसेगा अब तू तो बेल को ।।
मोहन श्रीवास्तव
02.04.2024, मंगलवार
महुदा झीट पाटन दुर्ग
Monday, 1 April 2024
काला बाल
बुड्ढा पन करो बाय, जब है हेयर डाई,
फटाफट बूढ़ों को जवान ये बनाता है।
सत्तर को साठ कर, साठ को पचास कर,
उम्र दस बीस साल सब का छिपाता है।।
बाल को काला करके , मारके बुढ़ापा गोली
आईने के सामने खड़े हो इतराता है।
होते जब काले बाल, दिल होता खुशहाल,
चेहरे का भाव व प्रभाव बढ़ जाता है।।
जब पके मेरे बाल, देवी जी का सूजा गाल,
बोली जाके आज बाल काले करवाइए।।
करूंगी न बात चीत , भूल जाना सब प्रीत,
और कोई काम धाम मुझे ना बताइए ।
मेरे साथ घूमने को जाना है जो आपको तो
जाइए जी जाइए बहाने न बनाइए।
बोली मैं तो जानती हूं आप की सच्चाई सब,
बूढ़े हो रहे हो ये न जग को जनाइए।।
देवी जी की बात मांन, गया नाई की दुकान,
बोला मुझे कर दो जवान लीप पोत कर l।
मुस्काते हुए मुझे नाई बोला बैठ जाओ,
कुर्सी पे बैठा मैं भी दांत को निपोरकर।।
दांत जो निपोरा मैंने वो भी मेरा नकली था,
आ गया बाहर साला मुंह से निकलकर।
नाई हैरान हुआ मैं भी परेशान हुआ,
बात सुलटाया मैने कैसे भी संभलकर।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा झीट पाटन
01.04.2024
Sunday, 24 March 2024
होली खेलैं बनवारी बिरज में २
होली खेलैं बनवारी बिरज में २
उठि के बिहनियां धूम मचावें
पू पू करके पूप बजावें
लेके कनक पिचकारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।१।।
तन पीताम्बर कटि में करधन
पग में घुंघरू बजत छनन छन
नंद बबा के दुआरी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।२।।
भरि पिचकारी ग्वारन आए
कान्हा को सब रंग लगाए
करते हुड़दंग वो भारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।३।।
ढोलक झांझ मृदंगा बाजे
घूंघट ओढ़ि गुआरिन लाजे
देवत गीत में गारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।४।।
रंग गुलाल अबीर उड़ाएं
इक दूजे को रंग लगाएं
रंग गये आज मुरारी
बिरज में होली खेलैं बनवारी।।५।।
होली खेलैं बनवारी बिरज में २
शुभ होली (कुंडलियां)
Monday, 18 March 2024
"राधा कृष्ण की होली" दोहे
"राधा कृष्ण की होली"
राधा जी मकरंद हैं, लूटें कृष्ण पराग।
लिपट लिपट कर खेलते, यमुना तीरे फाग।।
श्याम रंग में डूबते, राधा के सब अंग।
गोरी राधा से हुए, मोहन मस्त मलंग।।
बरसाने टोली चली, खेलन होली आज।
ग्वालबाल संग श्याम लखि, राधा आवे लाज।।
मोहन पिचकारी लिए, जाते राधा पास।
भागी जाएं राधिका, मन में है उल्लास।।
लिन्ह पकड़ हैं राधिका, श्याम कसे भुजबंध।
लट कपोल रगड़ें किसन, करें बहुत हुड़दंग।।
कटि बांधे पीताम्बरी, कसे वेणु निज श्याम।
मोर पंख है सीस पर , लगते सुख के धाम।।
श्याम प्रीत के रंग में, राधा जाए डूब।
इक दूजे पे रंग से, होली खेलें खूब।।
पिचकारी की मार से, राधा हुईं बेहाल।
पाकर मोहन प्रेम को, हो गइ मालामाल।।
भीगी चूनर राधिका, पीताम्बर घनश्याम।
रंगों की बौछार से, यमुना हुई ललाम।।
जमुना जल में धो रहे, दोनों अपना रंग।
मोहन राधा रंग से, जमुन हुई सतरंग।।
होली के सब रंग को , धोएं राधा श्याम।
मोद युक्त यमुना हुई, छवि निरखत अभिराम।।
होली की शुभकामना, आप सभी को मीत।
सतरंगी जीवन रहे, बढ़े सभी में प्रीत।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
12.03.2023
Mahuda,jheet,patan durg Chhattisgarh
1367
Wednesday, 13 March 2024
वो जाके बसे परदेश
अपने जीवन कुछ शेष।
वो जाके बसे परदेश।।
जनमें बेटा-बेटी थे जब,
हर्षित बापू माई।
चाचा चाची नाना नानी,
दादा दादी ताई।।
थी खुशियां बडी विशेष।
वो जाके बसे परदेश।।१।।
अपने जीवन कुछ शेष।
हमने जैसे तैसे जीकर,
उनको खूब पढ़ाया।
उनकी सुख सुविधा के खातिर,
अपना मान घटाया।।
उन्हें ना हो दुःख लव लेश।
वो जाके बसे परदेश।।२।।
अपने जीवन कुछ शेष।
पढ़ लिख कर जब योग्य हुए तो,
अपना व्याह रचाए।
दूर देश में जाकर के वे,
अपना गेह बसाए।।
लें मोबाइल सन्देश।
वो जाके बसे परदेश।।३।।
अपने जीवन कुछ शेष।
क्या क्या सोचे थे हम दोनों,
देखे थे सुख सपने।
अपना दुःख किसको बतलाएं,
छोड़ गए जब अपने।।
दिल में दिन रात कलेश।
वो जाके बसे परदेश।।४।।
अपने जीवन कुछ शेष।
सपनों के इस सूने घर में,
हम हैं आज अकेले।
यहीं लगा करते थे जब तब,
सब खुशियों के मेले।।
अब यादों के अवशेष।
वो जाके बसे परदेश।।५।।
अपने जीवन कुछ शेष।
कवि मोहन श्रीवास्तव
महुदा, झीट, अम्लेश्वर,दुर्ग,छत्तीसगढ़
दिनांक १३.०३.२०२४
Friday, 1 March 2024
छंद - बसन्त तिलका "शिव स्तुति" भोले बजाय डमरू
छंद - बसन्त तिलका
शिव स्तुति
भोले बजाय डमरू, गण साथ में हैं।
गंगा ललाट पर है, जग नाथ में है।।
लेके त्रिशूल चलते, हरि नाम गाते।
बाघंबरी पहनके, शिव ॐ ध्याते।।१।।
हैं साथ वाम गिरिजा, शिव की पियारी।
नन्दी सजे बसह पे, करते सवारी।।
कैलाश लोक हर का, गृह है निराला।
माला भुजंग गर में, मुख पे उजाला।।२।।
राकेश सीस शिव के, अलि कान बाला।
पीते सुधा समझ के, विष रूप प्याला।।
हैं कोटि काम लजते, शिव रूप से है।
भोले सदा सरल हैं , सुर भूप भी हैं।।३।।
माथा त्रिपुण्ड सजता, तन भस्म भारी।
मुस्कान मंद मुख पे, बहु व्याल धारी।।
ब्रह्माण्ड के शिव पिता, सब लोक भर्ता।
पालें विनाश करते, सुख सिद्धि कर्ता।।४।।
लाला ललाल ललला, ललला ललाला
विघ्नेश कार्तिक सदा, सुत संग में हैं।
भोले जपें हरि सदा, अहि अंग में हैं।।
बाबा करूं अरज मैं , बिगड़ी बनाओ।
दो ज्ञान बुद्धि बल को, धन को बढ़ाओ।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
दिनांक:- ०१.०३.२०२४, शुक्रवार,
गुलमोहर रेसीडेंसी, महावीर नगर, रायपुर छत्तीसगढ़