चले पूर्वा हवा,घेरे काली घटा,
मोरा मन तो, नही रह पाए ।
गर्मी पड़े बड़े जोर,धूल उठे चहूं ओर,
सब काले बादल पर, आश लगाए ॥
चले पूर्वा.......२
बदरा बरसा बड़ा जोर,पानी बहे चारों ओर,
दादुर अपनी, आवाज लगाए ।
हुआ धरा-गगन का मिलन,सबके दिल देखो मगन,
मुझे कुछ भी, पिया बिन न भाए ॥
चले पूर्वा.........२
थर-थर कांपे बदन,तन मे सुलगे अगन,
मुझे चैन से, रहा नही जाए ।
कर साज श्रृंगार, मै तो हो गई तैयार,
पर मोर पिया तो, अभी नही आए ॥
चले पूर्वा..........२
मै तो हो गई बीमार,सारी दवा हुई बेकार,
कई बैद भी, शहर से तो आए ।
वे कई बूटी पिलाए, बहुत नुस्खा बताए,
पर वे ईलाज मेरा, नही कर पाए ॥
चले पूर्वा हवा,घेरे काली घटा,
मोरा मन तो, नही रह पाए ।
गर्मी पड़े बड़े जोर,धूल उठे चहूं ओर,
सब काले बादल पर, आश लगाए ॥
चले पूर्वा.......२
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-01-2000,saturday,7.30pm,
chandrapur,maharashtra.
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