Monday 19 February 2024

क्या-क्या हमें ये गुल, खिलाती है ज़ींदगी

क्या-क्या हमें ये गुल, खिलाती है ज़ींदगी ।
कभी खुशी कभी गम ,दिखाती है जींदगी  ॥

रहना है सुख और दुख मे, सिखाती है जींदगी ।
हर वक्त के संग चलना, बताती है जींदगी ॥

कभी सुख मे गम के साये को, भुलाती है जींदगी ।
कभी दुख मे सुख की याद, दिलाती है जींदगी ॥

बिछुड़े हुये को देखो, मिलाती है जींदगी ।
रिश्तों की डोर को ये, निभाती है जींदगी ॥

कभी अपमान ये हमारा ,कराती है जींदगी ।
कभी सम्मान हमे खुब, दिलाती है जींदगी ॥

चंद बातों को ये लेके, लड़ाती है जींदगी ।
दौलत के लिये खून, बहाती है जींदगी ॥

भाई-भाई मे झगड़े ये, कराती है जींदगी ।
कैसे-कैसे रोज लफड़े, कराती है जींदगी ॥

संस्कार क्या हैं मेरे, बताती है जींदगी ।
करना है सबसे प्यार, सिखाती है जींदगी ॥

मीठे बोल बोलो, बताती है जींदगी ।
कभी खून के आंसू, रुलाती है जींदगी ॥

दिल मे सुनहरे सपने ,सजाती है जींदगी ।
कभी खुशियों के गीत दिल से, गाती है जींदगी ॥

मा-बाप की सेवा, सिखाती है जींदगी ।
बस कर्म ही पूजा, बताती है जींदगी ॥

जो कुछ भी हो रहा है ,कराती है जींदगी ।
सब को अमन का पाठ, पढ़ाती है जींदगी ॥

क्या-क्या हमें ये गुल, खिलाती है ज़ींदगी ।
कभी खुशी कभी गम, दिखाती है जींदगी  ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२५--२०१३,बृहस्पतिवार,शाम,५ बजे,

पुणे ,महा.

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