इतना मत जुल्म ढहावो मुझ पर,
ना मुझ पर इतना अत्याचार करो ।
मैं भी किसी की हूं बेटी,
ना हमसे इतना क्रूर व्यवहार करो ॥
आंटी,अंकल मैं पांव पड़ रही,
मुझ पर इतना ना जुल्म करो ।
जिस्म फरोशी के धंधे के लिये,
नहीं मुझे मजबूर करो ॥
मेरा जीवन तबाह हो जायेगा,
ना ही मुझे कोई अपनायेंगे ।
मेरे घर के परिवार सभी,
जीते जी मर जायेंगे ॥
माँ जीते जी मर जायेगी,
मेरे पापा कहां मुंह दिखायेंगे ।
जब तक जियेंगे लोगों में,
नफरत से देखे जायेंगे ॥
ऐसी ही दर्द भरी चित्कारों से,
वो उन सबसे विनती करती होगी ।
जब कोई अबला या बेटी,
जिस्म फरोशों के जाल मे फसती होगी ॥
जब कोई अबला या बेटी,
जिस्म फरोशों के जाल मे फसती होगी.....
मोहन श्रीवास्तव(कवि)
31-01-2014,Friday,05:00pm,(848)
Pune,M.H.
No comments:
Post a Comment