सपनों के तारे उनके जमीं पे हैं आ गए,
जिनके सहारे कभी थे वे मुस्कुरा रहे ।
हर हाल मे तो बस उन्हें जीना कुबूल था,
पर आज वो तो कैंसर से देखो हैं लड रहे ॥
पल भर मे उनकी खुशियों को जैसे लग गया नजर,
कहते थे दुःख के बाद सुख आता है जरुर,
पर आज उनकी जींदगी मे अंधेरे ही छा गए ॥
सब कुछ तो लुट चुका था, लुटने को कुछ न था,
पर आज अपनी जींदगी देखो लुटा रहे ।
कभी पेंसिल से जो लिखे थे,अरमानों का कोई खत,
पर आज अपने हाथों से उसे हैं मिटा रहे ॥
गुलशन में उनकी कलियां आने लगे थे अब,
वो भी अपने मेहनत पे थे इतरा रहे ।
पर सहसा अचानक कोई तूफान आ गया,
वो तो सोच-सोच के बस आसू बहा रहे ॥
तूफान तो आये थे उनके गुलशन मे बहुत से,
पर सह लिये थे वो सब हसते हुए।
मगर ये तूफान आया है जाने किधर से,
पर वो सह रहे हैं सब कुछ सहमे हुए ॥
सपनों के तारे उनके जमीं पे हैं आ गए,
जिनके सहारे कभी थे वे मुस्कुरा रहे ।
हर हाल मे तो बस उन्हें जीना कुबूल था,
पर आज वो तो कैंसर से देखो हैं लड रहे ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
9009791406
9009791406
३१-१२-२०१४. बुद्धवार,
कमला नेहरु कैंसर संस्थान इलाहाबाद(उ. प्र.)
No comments:
Post a Comment