झुकी आम डाली लगी बौर वाली ,
महुआ का आँगन महकने लगा !
चहूँ ओर भरने फूलों से दामन ,
ऋतुओं का राजा बहकने लगा है !!
कोयल कुहुँक कर पपिहे से बोली ,
मयूरा का तन-मन नचने लगा है !
मदमस्त सरसों पिली लजीली ,
गुलाबों पे भवंरा भटकने लगा है !!
गदराई टेसू पलासों की डाली ,
पिया रस बसंती के चखने लगा है !
भजन छोड़कर अब मिलन गीत गाते ,
कवि मन हमारा धधकने लगा है !!
फगुनाया मौसम महकी बयारें ,
तन के अगन मन दहकने लगा है !
जिन्हे प्यार वाली छुअन मिल न पाई ,
मन आज उनका कसकने लगा है !!
धानी चुंदरिया धरती ने ओढी ,
गगन मुस्कुरा आज तकने लगा है !
भंवरों की टोली रिझाने गुलों को ,
मिलन गीत गाकर उचकने लगा है !!
खुश्बु लुटाती पवन बह रही है ,
चेहरा सभी का दमकने लगा है !
बहारों की रौनक जिधर देखो मोहन ,
मुहब्बत में जर्रा चमकने लगा है !!
कवि मोहन श्रीवास्तव
रचना क्रमांक :- ( 995 )
महुआ का आँगन महकने लगा !
चहूँ ओर भरने फूलों से दामन ,
ऋतुओं का राजा बहकने लगा है !!
कोयल कुहुँक कर पपिहे से बोली ,
मयूरा का तन-मन नचने लगा है !
मदमस्त सरसों पिली लजीली ,
गुलाबों पे भवंरा भटकने लगा है !!
गदराई टेसू पलासों की डाली ,
पिया रस बसंती के चखने लगा है !
भजन छोड़कर अब मिलन गीत गाते ,
कवि मन हमारा धधकने लगा है !!
फगुनाया मौसम महकी बयारें ,
तन के अगन मन दहकने लगा है !
जिन्हे प्यार वाली छुअन मिल न पाई ,
मन आज उनका कसकने लगा है !!
धानी चुंदरिया धरती ने ओढी ,
गगन मुस्कुरा आज तकने लगा है !
भंवरों की टोली रिझाने गुलों को ,
मिलन गीत गाकर उचकने लगा है !!
खुश्बु लुटाती पवन बह रही है ,
चेहरा सभी का दमकने लगा है !
बहारों की रौनक जिधर देखो मोहन ,
मुहब्बत में जर्रा चमकने लगा है !!
कवि मोहन श्रीवास्तव
रचना क्रमांक :- ( 995 )
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