उस कुल में मेरा जन्म न हो ,
बेटी जिनको स्वीकार न हो |
जहां नफरत और अपमान मिले ,
और जीने का अधिकार न हो ||
उस कुल में मेरा ...........
कोख पे आरी चल जाती ,
और माँ ममता की उजड़ जाती |
जब कभी पिले हाथ हुए तो ,
दहेज की बलि है चढ़ जाती ||
ऐसे हैवानों के यहाँ ,
मेरा अपना घर -द्वार न हो ...
उस कुल में मेरा ..........
जहां नारी का सम्मान न हो ,
ऐसे घर मेरा बिवाह न हो |
जहां शब्दों के तीन तलाक मिले ,
वहां मेरा कभी निकाह न हो ||
जहां हिंसा और हो मार -काट ,
वहां कभी मेरा ब्यवहार न हो ....
उस कुल मे मेरा ...........
ऐसे घर मेरा जन्म न हो ,
जहां मजहब की दिवारें हों |
बेटी जिनको मंजूर न हो ,
और बेटे जिन्हें दुलारे हों ||
उस कोख की मुझको चाहत है ,
जिसमें मेरी खुशियाँ उधार न हों ......
उस कुल में मेरा जन्म न हो ,
बेटी जिनको स्वीकार न हो |
जहां नफरत और अपमान मिले ,
और जीने का अधिकार न हो ||
उस कुल में मेरा ...........
मोहन श्रीवास्तव ( कवि )
रचना क्रमांक ;-( 1064 ),08/05/2017,
झीट ,पाटन ,दुर्ग (छ .ग )
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