वो हैं भारत के हितैषी और हमराज सही |
जिन्हें तिरंगा उठाने में कोई लाज नहीं ||
वो हैं भारत के हितैषी............
पर नमक हरामों से कह दो कहीं और जाएँ |
हिंदुस्तान में उनका है कोई काज नही ||
वो हैं भारत के हितैषी............
नाम और धर्म बदलके जिसने लूटा है |
उन्हें अपना बनाने का यहाँ रिवाज नही ||
वो हैं भारत के हितैषी............
हमें आपस में लड़ा करके जिसने राज किया |
वो हो सकते कभी भी सरताज नही ||
वो हैं भारत के हितैषी............
वतन का खाते हैं और दुश्मनों का गाते हैं |
उन्हें डूब मरने में कोई भी देखो लाज नही ||
वो हैं भारत के हितैषी............
तमाम ऊम्र ही हमको अँधेरे में रखा |
कल और बात थी मोहन अब और आज नही ||
वो हैं भारत के हितैषी और हमराज सही |
जिन्हें तिरंगा उठाने में कोई लाज नहीं ||
वो हैं भारत के हितैषी............
मोहन श्रीवास्तव ( कवि )
रचना क्रमांक ;-(1077)
19-06-2018,उतई ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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