भिन्न भिन्न ढेरों पंथ , लिखे जा रहे हैं ग्रन्थ
सब उसी परमेश का ही ध्यान करते |
परमेश जो है एक , उसके रूप अनेक
निज मति सब कोई गुणगान करते ||
यह है हमारा देव , वह है तुम्हारा देव
जहाँ तहाँ सभी जन इसी पे हैं लड़ते |
एक ही ईश्वर जान , सब उसकी संतान।
फिर क्यूँ आपस में लड़ लड़ मरते ||
फिर क्यूँ आपस में लड़ लड़ मरते ||
कवि मोहन श्रीवास्तव
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