Sunday, 21 October 2018

"भिन्न भिन्न ढेरों पंथ "

भिन्न भिन्न ढेरों पंथ , लिखे जा रहे हैं ग्रन्थ 
सब उसी परमेश का ही ध्यान करते | 
परमेश जो है एक , उसके रूप अनेक 
निज मति सब कोई गुणगान करते || 
यह है हमारा देव , वह है तुम्हारा देव 
जहाँ तहाँ सभी जन इसी पे हैं लड़ते | 
एक ही ईश्वर जान , सब उसकी संतान। 
फिर क्यूँ आपस में लड़ लड़ मरते || 
फिर क्यूँ आपस में लड़ लड़ मरते || 


कवि  मोहन श्रीवास्तव 

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