"श्री राम तांडव स्तोत्र" भावानुवाद
छन्द : पञ्चचामर
जटा समूह युक्त भाल दीर्घ है महामना,
अमर्ष लाल नेत्र से जटा बिखेर के विभो।
प्रचण्ड वेग के प्रहार रौद्र रूप काल सा,
अराति छिन्न भिन्न झुण्ड मध्य शोभते प्रभो।।१।।
विशाल सैन्य वानराधिराज युक्त उग्र हैं,
महान अस्त्र शस्त्र सज्य चाप त्रोण बाण हैं।
प्रचण्ड दैत्य सैन्य अग्निरूप राम सिन्धु हैं,
अराति आर्तभाव याचना लगात त्राण हैं ।।२।।
भुजा विशाल कंप ओष्ठ गात वृक्ष छाल है,
विदीर्ण शत्रु देह की महान कामना करें।।
प्रघोर रोष व्याप्त है सिया हरे दशानना,
धरे प्रचण्ड रूप राम दैत्य प्राण को हरे।।३।।
अधर्मवृद्धि कामना करे कुमार्ग दैत्य ने,
कुकर्मनाश हेतु बाण श्रीनिवास छोड़ते।
हठी पयोधि सेतु बांध पार सैन्य को किये,
प्रमत्त यातुधान गर्व राघवेन्द्र तोड़ते।।४।।
कटार खड्ग पाश आदि यातुधान धारते,
पटी हुई वसुंधरा विभत्स हाड़ मांँस से।
घिरे प्रभो कपीश झुण्ड रक्त से नहा रहे,
विदीर्ण दैत्य देह से पटी मही विनाश से।।५।।
विशालदंष्ट्र कुंभकर्ण आदि वीर बाँकुरे,
अजेय दैत्य मेघनाद आदि रक्षते जिसे।
अभेद्य दुर्ग स्वर्ण लंक दिव्य अस्त्र से विंधे,
पहाड़ धूलि के समान राम क्रोध से पिसे।।६।।
प्रसिद्ध सिद्ध चारणों व योगिराज आदि से,
सदैव भक्तवृंद के सुपुज्य आप हैं विभो।
शरीर शीश छिन्न-भिन्न भूमि में दशानना,
अराति सैन्य सर्वनाश आपने किया प्रभो।।७।।
कराल रूप युक्त आप उग्र चाप धार के,
पड़े कपीश रीछ मोह में सभी अधार को।
बिभिषणादि से किये विचार शत्रुनाश को,
भजूं सदैव उर्मिलापती कनीष्ठ भ्रात को।।८।।
ध्वजा कटार कुंत धार दास शत्रु सैन्य के,
विराट रौद्र रूप देख यत्र तत्र भागते।
विनाश प्राप्त हो रहे प्रघोर घोर युद्ध में,
अजेय राम रूप देख शत्रु प्राण त्यागते।।९।।
प्रभा महान युक्त सर्व पुष्ट तुष्ट हैं किये,
विकार आदि से विरक्त भक्त कष्ट काटते।
कपीश सैन्य नाथ जी अधर्मनाश के लिए ,
परोपकार सृष्टि हेतु दिव्य देह धारते।।१०।।
कटार खड्ग शूल भिंदिपाल तीर फावड़ा ,
कुठार आदि अस्त्र से प्रचण्ड दैत्य को हते।
विशाल चाप के दहाड़ शत्रु कान बेधते,
धरा अनंत प्राणहीन दैत्य देह से पटे।।११।।
उदार देव हो प्रसन्न मोहना मनाय है,
समस्त दुर्गुणादि नष्ट को करो महाप्रभो।
भजो सप्रेम भाव से सभी दयालु राम को,
प्रह्लाद आदि दैत्यवृंद इंद्र पूज्य हे विभो।।१२।।
इति श्री भागवतानंद गुरुणा विरचिते श्री राघवेंद्र चरिते इंद्रादि देवगणैः कृतम श्री राम ताण्डव स्तोत्रम सम्पूर्णम।
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