Tuesday, 24 January 2023

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र (भावानुवाद)(शार्दूल विक्रिड़ीत छंद)

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र (भावानुवाद)

(शार्दूल विक्रिड़ीत छंद)।


भोले भक्ति प्रदान हेतु प्रकटे, सौराष्ट्र के देश में ।

माथे पे शशि सोहता रतन सा, शोभा सजे केश में।।

आया हूं शिवनाथ के शरण में , माथा झुकाऊँ वहां।

पाऊं दर्शन सोमनाथ शिव का, आनंद छाया महा।।१।।


जो आदर्श पर्वत के शिखर पे, श्री शैल चोटी बसे।

आते हैं सुर रोज रोज चलके, आनंद से वे हंसे।।

जो हैं पार उतारने भव से, भोले बने नाव हैं।

मल्लिकार्जुन लिंग के शरण में, जो भक्त के ठांव हैं।।२।।


जो उज्जैन महान काल प्रगटे, देने यती मोक्ष हैं।

ऐसे शंभु कराल का वंदन करूं, जो मृत्यु के यक्ष हैं।।३।।


जो हैं पार उतारते भगत को, संसार के सिंधु से।

कावेरी अरु नर्मदा मिलन के , भोले किनारे बसे।।

मांधाता पुर नाम नगर का, शंभू विराजे वहां।

ओंकारेश्वर हैं कल्याणमय जो, माथा नवाऊँ तहां।।४।।


पूर्वोत्तर दिशा शंभु प्रकट जो बाबा बैद्यनाथ हैं।

गौरी संग विराजते वह सदा, जो भक्तों के आश हैं।।

पूजे हैं सुर और राक्षस सभी, ऐसे ललाटाक्ष को।

पूजूं मैं उन वैद्यनाथ शिव को, संसार के धाम को।।५।।


"जो दक्षिण सदंग के नगर में, आभूषणों से सजे।

नाना भोग विलास वैभवादि से, जो मीनकेतू लजे।।

देते सद्गति नागनाथ शिव जी, दें मुक्ति संसार से।

ऐसे शंकर से करूं विनय मैं, जो पालते प्यार से।।६।।


पूजे हैं जिनको सभी मुनि यती, राक्षस या देवता।

केदारेश्वर शंभु वास करते, लोकेश के जो पिता।।

ध्याएँ यज्ञ इंद्रादि आदि सब हैं, नाऊ सदा माथ मैं।

जो नागेश पर्वत पे बसत हैं, चाहूं सदा साथ मैं।।७।।


ऊंचे सह्य पर्वत के शिखर पे, गोदावरी तीर पे।

त्रयंबकेश्वर नाथ शोभित हुए, गंगा सदा सीस पे।।

भोले दर्शन मात्र से मन खिले, नाशे सभी ताप हैं।

त्रयंबकेश्वर नाथ के शरण जो, काटें सभी पाप हैं।।८।।


बांधे सागर सेतु राम शर से, जो ताम्र परणी जुड़े।

रामेश्वर शंभु के शरण में, माथा सदा है गड़े।।९।।


जो पूजित सदैव प्रेत गण महा, वो शाकिनि डाकिनी।

भीमा शंकर को प्रणाम करके,गाऊं सदा रागिनी।।१०।।


जो आनंद करें महानगर में, काशी कहाता वही।

सारे पाप जरे सिवा दरस से, है सत्य बातें यही।।

काशीनाथ अनाथ के जनक हैं, बाबा विश्वनाथ जी।

आया मोहन आपके के शरण में, ले लो भोले नाथ जी।।११।।


होके वंदित वे इलापुर बसे, आवास जो दिव्य है।

घृष्णेश्वर उदार को नमन है ,जो विश्व में भव्य हैं।।१२।।


जो भी पाठ करें सुजान क्रम से, द्वादश ज्योतिर्लिंग का।

पाते हैं फल लिंग के दरस का, संसार में ख्याति पा।।१३।।


कवि मोहन श्रीवास्तव

19.1.2023, गुजरा, पाटन दुर्ग

बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थान – Tw


रचयिता आदि शंकराचार्य जी 

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